BHOPAL में शाह का रुख और शिवराज व नंदू की बॉडी लैंग्वेज सुर्खियां

भोपाल। मप्र भाजपा में एक जलजला आया था। गुजर गया लेकिन निशान अब भी बाकी हैं। इन ​तीन दिनों में जो कुछ हुआ मप्र भाजपा के इतिहास में इससे पहले कभी नहीं हुआ था। मप्र वो राज्य है जहां से भाजपा ने उत्थान प्राप्त किया। कई राष्ट्रीय अध्यक्ष आए लेकिन अमित शाह जैसा अब तक कोई ना था। यूं तो इन 3 दिनों में 3 दर्जन से ज्यादा हेडलाइंस बनीं लेकिन टॉप मोस्ट हैं शाह का रुख और शिवराज व नंदूभैया की बॉडी लैंग्वेज। अमित शाह 18 से 20 अगस्त तक भोपाल में थे। 

स्टॉक ब्रोकर रहे अमित शाह भोपाल में भाजपा के परंब्रह्म की तरह आए थे। कोर ग्रुप की मीटिंग के समय उनका रुख किसी स्कूल के हेडमास्टर की तरह था और सीएम शिवराज सिंह व नंदकुमार सिंह चौहान कुछ इस तरह उपस्थित थे मानो बिना होमवर्क किए क्लास में आ गया स्टूडेंट। शाह ने लगभग सभी नेताओं की सिट्टी-पिट्टी गुम कर रखी थी। लोगों के चेहरे पर हवाईयां उड़ रहीं थीं। मीटिंग से निकले नेताओं में कई तो सदमे में नजर आए। 

इन तीन दिनों में उन्होंने सत्ता, संगठन से जुड़े लोगों के साथ कई स्तरों पर बैठकें भी की, इन बैठकों में कुछ लोगों ने साहस जुटाकर बोलने की कोशिश भी की, मगर वे कुछ कहते, उससे पहले ही शाह का रुख देखकर उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और गौरीशंकर शेजवार जैसे नेताओं को तो बोलने से पहले ही बिठा दिया गया।

शाह के इस तीन दिवसीय दौरे के दौरान प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की 'बॉडी लैंग्वेज' हर किसी का ध्यान खींचने वाली रही। अब यह सर्वाधिक चर्चा का विषय है। जिस समय अमित शाह बयान दे रहे थे कि 2018 का चुनाव भी शिवराज सिंह के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, उस समय भी शिवराज सिंह के चेहरे पर उत्साह, उमंग, सफलता या सामान्य प्रसन्नता का भी भाव नहीं था। 

शाह ने सबके सामने शिवराज सिंह का झूठ पकड़ा 
ज्ञात हो कि राज्य में दो वरिष्ठ मंत्रियों बाबू लाल गौर व सरताज सिंह से 75 वर्ष की आयु पार करने पर इस्तीफा ले लिया गया था। तब उन्हें यह बताया गया था कि पार्टी हाईकमान का यह निर्देश है। मगर शाह ने मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री की मौजूदगी में इस तरह का कोई फॉर्मूला नहीं होने की बात कहकर मुख्यमंत्री व प्रदेशाध्यक्ष की मुश्किलें बढ़ा दी है। शाह के जवाब के वक्त मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के चेहरे पर हवाइयां उड़ गई थीं।

भाजपा से पोषित पत्रकारों की क्लास भी लगाई
शाह एक तरफ जहां भाजपा के लोगों को अनुशासन का पाठ पढ़ाते नजर आए, तो दूसरी ओर उन पत्रकारों की भी क्लास लेने में नहीं हिचके जो भाजपा के आगे पीछे घूमते रहते हैं। कभी स्टॉक ब्रोकर रहे शाह ने कई पत्रकारों को पढ़ने और स्तरीय सवाल पूछने तक की सलाह दे डाली। कुछ पत्रकारों को तो डपट तक दिया। चौंकाने वाली बात यह है कि उसके बाद भी मप्र शासन से वित्त पोषित पत्रकार मुस्कुराते रहे। 

अब तो मोदी और शाह ही सर्वं मम देव देव
वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया का कहना है कि भाजपा में एकाधिकारवाद हावी हो गया है और अनुशासन का डर दिखाया जाता है, सभी जानते हैं कि अब उनकी सुनवाई किसी अन्य फोरम पर नहीं होने वाली, लिहाजा शाह के दौरे के दौरान नेता-कार्यकर्ता डरे, सहमे, हताश व निराश नजर आए।

वह आगे कहते हैं कि शाह और मोदी का प्रभाव पार्टी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी ज्यादा हो गया है, यह बात नेता भी स्वीकार रहे हैं, पहले पार्टी संगठन किसी नेता का टिकट काट देता था, तो वह अपनी बात दूसरे फोरम पर रख देता था और उसकी बात सुनी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। बात साफ है, जिसे राजनीति करनी होगी, उसे पार्टी हाईकमान के निर्देश मानने होंगे। यही आंतरिक लोकतंत्र है। 

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