अचानक प्रकट हुई श्रीगणेश प्रतिमा जिसे भगवान श्रीराम एवं कृष्ण ने पूजा

जयपुर। सवाई माधोपुर जिले में हजार साल पुराने राजस्थान के रणथंभौर किले में विराजमान हैं त्रिनेत्र गणेश। यह भगवान गणेश के सबसे प्रसिद्ध और सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस गणेश मूर्ति को प्रथम गणेश या त्रिनेत्र गणेश के रूप में जाना जाता है। यहां स्थापित श्रीगणेश प्रतिमा के तीन नेत्र हैं, इसीलिए इन्हे त्रिनेत्र गणेश कहा जाता है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहां श्रीगणेश अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी -रिद्धि और सिद्धि और दो पुत्र -शुभ व लाभ, के साथ विराजमान हैं। 

कहा जाता है कि 1299 में राजा हमीर और अलाउद्दीन खिलजी के बीच में युद्ध चला। युद्ध शुरू हुआ तो हम्मीर ने प्रजा और सेना की जरूरतों को देखते हुए ढेर-सा खाद्यान और जरूरत की वस्तुओं को सुरक्षित रखवा लिया था। पर युद्ध लंबे अरसे तक खिंच जाने की वजह से हर चीज की तंगी होने लगी थी। 

राजा, जो गणेश जी का भक्त था, हताश और परेशान हो उठा। तभी राजा हमीर के सपने में भगवान गणेश ने आश्वासन दिया कि उनकी विपत्ति जल्द ही दूर हो जाएगी। उसी सुबह किले की दीवार पर त्रिनेत्र गणेश जी की मूर्ति अंकित हो गई। जल्द ही युद्ध समाप्त हो गया। इसके बाद हमीर राजा ने मंदिर का निर्माण करवाया।

भारत के कोने-कोने से लाखों की तादाद में दर्शनार्थी यहाँ पर भगवान त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु आते हैं और कई मनौतियां माँगते हैं, जिन्हें भगवान त्रिनेत्र गणेश पूरी करते हैं। इस गणेश मंदिर का निर्माण महाराजा हम्मीरदेव चौहान ने करवाया था लेकिन मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम है। इस मंदिर के अलावा सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्दपुर सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है। 

मंदिर की दूरी
सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के भीतर विश्व विरासत में शामिल रणथंभोर दुर्ग में भगवान गणेश का ऐतिहासिक महत्त्व वाला प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर में जाने के लिए लगभग 1579 फीट ऊँचाई पर भगवान गणेश के दर्शन हेतु जाना पड़ता है। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को भक्तों की भीड़ के चलते रणथम्भौर की अरावली व विंध्याचल पहाड़ियाँ गजानन के जयकारों से गुंजायमान रहती है। भगवान त्रिनेत्र गणेश की परिक्रमा 7 किलोमीटर के लगभग है। जयपुर से त्रिनेत्र गणेश मंदिर की दूरी 142 किलोमीटर के लगभग है।

भगवान श्रीराम ने अभिषेक किया था
भगवान राम ने लंका कूच करते समय इसी गणेश का अभिषेक कर पूजन किया था। अत: त्रेतायुग में यह प्रतिमा रणथम्भौर में स्वयंभू रूप में स्थापित हुई और लुप्त हो गई।

भगवान श्रीकृष्ण ने यहां आकर आमंत्रित किया था
एक और मान्यता के अनुसार जब द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था तब भगवान कृष्ण गलती से गणेश जी को बुलाना भूल गए जिससे भगवान गणेश नाराज हो गए और अपने मूषक को आदेश दिया की विशाल चूहों की सेना के साथ जाओं और कृष्ण के रथ के आगे सम्पूर्ण धरती में बिल खोद डालो। इस प्रकार भगवान कृष्ण का रथ धरती में धँस गया और आगे नहीं बढ़ पाये। मूषकों के बताने पर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और रणथम्भौर स्थित जगह पर गणेश को लेने वापस आए, तब जाकर कृष्ण का विवाह सम्पन्न हुआ। तब से भगवान गणेश को विवाह व मांगलिक कार्यों में प्रथम आमंत्रित किया जाता है। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है।

तीसरे नेत्र की मान्यता
रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी दुनिया के एक मात्र गणेश है जो तीसरा नयन धारण करते है। गजवंदनम् चितयम् में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णन किया गया है, लोक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी स्वरूप सौम पुत्र गणपति को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की सारी शक्तियाँ गजानन में निहित हो गई। महागणपति षोड्श स्त्रौतमाला में विनायक के सौलह विग्रह स्वरूपों का वर्णन है। महागणपति अत्यंत विशिष्ट व भव्य है जो त्रिनेत्र धारण करते है, इस प्रकार ये माना जाता है कि रणथम्भौर के रणतभंवर महागणपति का ही स्वरूप है।
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