'जान का जोखिम' के नाम पर किसी भी खेल पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते: हाईकोर्ट

मुंबई। बंबई हाई कोर्ट ने सोमवार को दही-हांडी के दौरान बनने वाले मानव पिरामिड की ऊंचाई पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है लेकिन अब 14 साल से कम उम्र के बच्चों को इस आयोजन में शामिल नहीं किया जा सकेगा। अदालत ने इसके आयोजकों को पुख्ता सुरक्षा उपाय अपनाने के भी निर्देश दिए हैं। हालांकि हाई कोर्ट ने 2014 में ऐसे मानव पिरामिड की अधिकतम ऊंचाई 20 फीट तय करते हुए इसमें 18 साल से कम उम्र के युवकों को शामिल करने पर रोक लगा दी थी।

आज इस मसले की सुनवाई करते हुए दो जजों की खंडपीठ ने कहा कि इन मामलों में हस्तक्षेप करना अदालत का नहीं विधायिका का काम है। अदालत ने यह भी कहा कि हादसे तो टॉयलेट में भी हो सकते हैं और लोग क्रिकेट खेलते या जिम्नास्टिक करते हुए भी मर सकते हैं। खंडपीठ ने यह भी कहा कि लोग सेल्फी लेते हुए भी मर सकते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि इस पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। अदालत ने राज्य विधानसभा में पिछले साल पारित हुए उस नियमन को स्वीकार कर लिया कि यह एक साहसिक खेल है। इस फैसले के बाद राज्य सरकार के पक्षकार ने कहा ​कि अब राज्य की विधानसभा मानव पिरामिड की ऊंचाई तय कर सकती है।

महाराष्ट्र में दही-हांडी का त्यौहार काफी लोकप्रिय है और इसमें हजारों लोग भाग लेते हैं. इसे मनाने के लिए लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर मटका तोड़ते हैं। इस दौरान उन पर पानी की बौछारें फेंकी जाती हैं लेकिन अनेक दुर्घटनाओं के चलते पिछले कई सालों में ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठती रही है। इसके चलते हाई कोर्ट ने तीन साल पहले ऐसे आयोजनों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। हालांकि कई आयोजकों ने इसे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बताते हुए अदालत से इस पर दोबारा विचार का आग्रह किया था।

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