भोपाल। मप्र का शिक्षा विभाग अपने काम कम और कारनामों के कारण ज्यादा सुर्खियों में रहता है। शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण भी विवादों में आ गया है। शिक्षा सव 2017 शुरू हो चुका है परंतु युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया सत्र 2016 की गणना के आधार पर हो रही है। सवाल यह है कि जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ गई है, उन शालाओं के शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण तर्कसंगत कैसे हो सकता है।
शिक्षा विभाग में तबादले और युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया यूं तो हमेशा ही विवादों में रहती है लेकिन इस बार इस प्रक्रिया का बेसिक की बदल गया है। सिस्टम की नाकामी के कारण 2016 में युक्तियुक्तकरण नहीं हो पाया। अब 2017 में शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है। विधिसम्मत यह है कि 2017 में स्कूलों में हुए छात्रों के एडमिशन के आधार पर युक्तियुक्तकरण होना चाहिए परंतु शिक्षा विभाग 2016 के डाटा का उपयोग 2017 के लिए कर रहा है। कई स्कूल ऐसे हैं जहां 2017 में छात्रों की संख्या बढ़ गई है वहीं कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां 2017 में छात्रों की संख्या घट गई है। ऐसे में युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया को 2017 के डाटाबेस के आधार पर किया जाना चाहिए परंतु अधिकारी अपना परिश्रम बचाने के लिए छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।
डीईओ भोपाल का कहना है कि यह प्रक्रिया गलत है लेकिन शासन ने जो निर्देश दिए हैं उनका पालन किया जा रहा है। सवाल यह है कि शासन में वो कौन है तो बेतुके निर्देश दे रहा है और क्यों ऐसे अफसरों को टोका नहीं जा रहा। इस बार का युक्तियुक्तकरण इसलिए भी विशेष है क्योंकि 2018 एवं 2019 चुनावी वर्ष हैं। इन वर्षों में युक्तियुक्तकरण नहीं होगा। ऐसे में जरूरी है कि सिस्टम को इसी साल बना लिया जाए।