राकेश दुबे@प्रतिदिन। चुनाव आयुक्त श्री ओम प्रकाश रावत के बयान ने चुनाव सुधार का झंडा बुलंद कर दिया है। उन्हें सेल्यूट। इस पहले ऐसा ही एक सेल्यूट उन्ही की भांति मध्यप्रदेश काडर के सेवा निवृत आईएएस अधिक्रारी श्री सत्यानन्द मिश्रा को दिया गया था, जिन्होंने राजनीतिक दलों के चन्दों की पोल खोल कर रख दी थी। सच में मध्यप्रदेश के ये अधिकारी अपनी तैनाती के दौरान हमेशा प्रजातंत्र की मजबूती के लिए मजबूती से खड़े रहे और अब भी अपनी दमदार राय बेहिचक रख रहे हैं।
चुनाव आयुक्त श्री ओमप्रकाश रावत ने एक बडा बयान दिया है। उनके इस बयान ने देश के मौजूदा राजनीतिक हालातों को आईना दिखा दिया है। श्री रावत ने कहा है कि चुनाव में हर हाल में जीतना आजकल चलन बन गया है, उन्होंने कहा कि जब चुनाव निष्पक्ष और सही तरीके से हों, तभी लोकतंत्र अच्छा चलता है। उन्होंने कहा कि आम आदमी को लगता है कि राजनीतिक दल चुनाव को हर हाल में जीतना चाहते हैं, और इसके लिए किसी भी तरह की स्क्रिप्ट भी लिखते हैं।
रावत ने बडा बयान देते हुए कहा कि विधायकों की खरीद फरोख्त करना, उन्हें धमकाना एक चतुर प्रबंधन है। उन्होंने कहा कि पैसे का लालच देकर किसी को अपनी ओर करना, राज्य तंत्र का उपयोग करना चुनाव जीतने का हिस्सा बन गया है। बेहतर चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों, राजनेताओं, मीडिया और समाज के अन्य लोगों को योगदान देना चाहिए। रावत ने कहा कि यह सोचना गलत है कि विजेता कोई पाप नहीं कर सकता है और साथ ही एक हारने वाले को भी इस तरह के अपराधिक दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता है।
गुजरात की राज्य सभा सीटों के लिए हुए चुनाव में दो कांग्रेसी विधायकों के मत को रद्द करने के लिए अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करने के करीब 10 दिन बाद चुनाव आयुक्त श्री रावत ने राजनीति में आ रही गिरावट के सामान्य बात होते जाने पर एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी की। श्री रावत ने कहा, “लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब चुनाव पारदर्शी, निष्पक्ष और मुक्त हों। लेकिन ऐसा लगता है कि छिन्द्रान्वेषी आम आदमी सबसे ज्यादा जोर इस बात पर देता है कि उसे हर हाल में जीत हासिल करनी है और वह खुद को नैतिक आग्रहों से मुक्त रखता है।”
श्री रावत ने कहा, “इसमें विधायकों-सांसदों की खरीदफरोख्त को स्मार्ट पोलिटिकल मैनेजमैंट माना जाता है, पैसे और सत्ता के दुरुपयोग इत्यादि को संसाधन माना जाता है।” श्री रावत ने कहा, ऐसा माने जाने लगा है की “चुनाव जीतने वाले ने कोई पाप नहीं किया होता क्योंकि चुनाव जीतते ही उसके सारे पाप धुल जाते हैं। राजनीति में अब ये “सामान्य स्वभाव” बन चुका है। जिन लोगों को भी बेहतर चुनाव और बेहतर कल की उम्मीद है उन्हें राजनीतिक दलों, राजनेताओं, मीडिया, सिविल सोसाइटी, संवैधानिक संस्थाओं के लिए एक अनुकरणीय व्यवहार का मानदंड तय करना चाहिए।”
गौर तलब है की ये दोनों अधिकारी मध्यप्रदेश में विभिन्न पदों पर रहे और मध्यप्रदेश की चुनावी शक्ल को बदलते हुए नजदीक से महसूस करते रहे हैं। पुन: सेल्यूट। साथ ही नसीहत उन्हें जो मध्यप्रदेश को चुनाव के मामले में बिहार बनाने को उतारू हैं। कुछ इधर भी हैं तो कुछ उधर भी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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