पश्चिम बंगाल में मोहर्रम के कारण दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर रोक

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में मोहर्रम के जुलूसों के दौरान मां दुर्गा की मूर्ति के विसर्जन पर रोक रहेगी। प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमा विसर्जन पर 30 सितंबर की शाम छ बजे से लेकर दो अक्टूबर की सुबह दस बजे तक रोक रहेगी। भक्त दशहरे के दिन शाम छ बजे तक ही दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन कर सकेंगे। इस साल एक अक्टूबर को मोहर्रम है। 

पिछले साल भी कोलकाता पुलिस ने मोहर्रम को देखते हुए मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाने का आदेश दिया था। इसे लेकर कोलकाता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकारा भी था और कहा था कि ये एक समुदाय को रिझाने की कोशिश है। भारतीय जनता पार्टी ने ममता के इस आदेश पर जमकर निशाना साधा है। बीजेपी नेता दिलीप घोष ने कहा कि आज मूर्ति विसर्जन पर रोक है, कल ममता बनर्जी दुर्गा पूजा पर बैन लगा देंगी। 

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का महत्व 
दुर्गा पूजा असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाता है। जहाँ इस समय पांच-दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। बंगाली हिन्दू और आसामी हिन्दुओं का बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है। 

बंगाली सांस्कृतिक संगठन देश भर में मनाते हैं 
पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दुर्गा पूजा का उत्सव दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का उत्सव 91% हिन्दू आबादी वाले नेपाल और 8% हिन्दू आबादी वाले बांग्लादेश में भी बड़े त्यौंहार के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राज्य अमेरीका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैण्ड, सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में आयोजित करवाते हैं। वर्ष 2006 में ब्रिटिश संग्रहालय में विश्वाल दुर्गापूजा का उत्सव आयोजित किया गया।

आजादी का प्रतीक है 
दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे-धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया।

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