मप्र में कर्मचारी नेताओं के हौंसले पस्त, 7 साल से नहीं हुई कर्मचारी हित की बात

भोपाल। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह सरकार ने बड़ी ही चतुराई के साथ कर्मचारी नेताओं में गुटबाजी के बीच बो दिए। हालात यह है कि पिछले 7 साल से कर्मचारी नेताओं ने कर्मचारी हित में कोई मजबूत पहल नहीं की है। इधर मप्र का कर्मचारी परेशान है और अब वो सरकार से दो टूक बात करना चाहता है। हालात 2010 वाले बन रहे हैं जब​ कर्मचारी बिना नेता के ही सड़कों पर उतर आए थे। मप्र में विधानसभा चुनाव में महज एक साल बचा है। पुराने कर्मचारी नेता मानते हैं कि सरकार से काम कराने के लिए इससे बेहतर समय नहीं होता।

तीन साल पहले तैयार सभी मान्यता और गैर मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों के संयुक्त मांग पत्र में 71 मांगें शामिल हैं। सातवें वेतनमान की मांग भी अधूरी है। सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के समान अन्य प्रासंगिक लाभ भी नहीं दिए हैं। लिहाजा, लंबित मांगों पर सरकार के रुख को देखते हुए आम कर्मचारी आंदोलन करने के लिए तैयार है, लेकिन नेता निर्णय लेने में देरी कर रहे हैं।

सात साल में एक भी बड़ा आंदोलन नहीं
अध्यापकों को छोड़कर राजधानी में पिछले सात साल में कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ और बड़ी मांगें भी पूरी नहीं हुईं। इस बीच कई बार आंदोलन के ऐलान हुए। कर्मचारियों को भी ये बात खल रही है, क्योंकि सिर्फ बातों से उनकी मांगें पूरी नहीं हो सकतीं। इसलिए वे खुद आंदोलित हो रहे हैं।

ऐसे पूरी कराई थी मांग
कर्मचारी छठवें वेतनमान के लिए वर्ष 2010 में नेताओं का दामन छोड़कर खुद ही सड़क पर उतर आए थे। जब सतपुड़ा और विंध्याचल के कर्मचारी सड़क पर उतर आए तो नेताओं को मजबूरी में नेतृत्व के लिए आना पड़ा। इस एक दिन की हड़ताल ने सरकार को हिला दिया और उसी दिन छठवें वेतनमान की घोषणा हुई।

कर्मचारी संगठित नहीं
सेवानिवृत्त कर्मचारी नेता सुरेश जाधव कहते हैं कि प्रदेश में कर्मचारी संगठित नहीं हैं, इसलिए सरकार उन्हें अहमियत नहीं दे रही। मान्यता देकर उन्हें कई संगठनों में बांट दिया है। नेता बढ़ गए हैं तो रसूख और पद की लड़ाईयां शुरू हो गई हैं। ज्यादातर नेता रजिस्ट्रार फर्म्स एंड सोसायटी और कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। ऐसे में आंदोलन नहीं हो सकते। सब मिलकर एक मांग रखें और उसके लिए एक साथ खड़े हों, तभी कुछ संभव है।

नोटिस से कांप जाती थी सरकार
पूर्व कर्मचारी नेता गणेशदत्त जोशी कहते हैं कि एक दौर था जब नेता हड़ताल का नोटिस देते थे, तो सरकार कांप जाती थी। मप्र तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के अध्यक्ष रहे नारायण प्रसाद शर्मा और सत्यनारायण तिवारी का नाम ऐसे ही नेताओं में गिना जाता है। शर्मा ऐसे नेता थे, जो हड़ताल का नोटिस लगाने के बाद सरकार का बुलावा ठुकरा देते थे। आज ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता।

कर्मचारियों की प्रमुख मांगें
छठवें वेतनमान में 5000-8000 और 5500-9000 वेतन बैंड पाने वाले 1.13 लाख कर्मचारियों की ग्रेड-पे कम कर दी गई।
छठवें वेतनमान का लाभ 14 से 17 माह बाद दिया गया। जबकि 12 माह के अंतराल से मिलना था।
पांचवें वेतनमान के लिए गठित ब्रह्मस्वरूप समिति ने 59 संवर्गों का वेतनमान अपग्रेड करने की अनुशंसा की थी, जो नहीं हुआ।
पांच दशक में 80 हजार से ज्यादा लिपिकों का वेतन चपरासी से भी कम हो गया है।
जनवरी-जून के बीच नियुक्त कर्मचारियों को एक वार्षिक वेतनवृद्धि का लाभ।
अवकाश नगदीकरण की सीमा 240 से बढ़ाकर 300 दिन करने की मांग।
पदोन्न्ति के लिए एक पद पर पांच वर्ष रहने की अनिवार्यता समाप्त करने।
शिक्षक, डॉक्टर, नर्सों के समान शेष कैडर के कर्मचारियों की सेवा आयु 62 साल करने।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की पदनाम कार्यालय सहायक करने।
संविदा, दैवेभो, कार्यभारित सहित अन्य कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों के समान लाभ।

तैयारी कर रहे
हम आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। जल्द ही रणनीति जारी करेंगे। इस बार पूरी ताकत से आंदोलन किया जाएगा। 
जितेंद्र सिंह, अध्यक्ष, मप्र अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा

रणनीति बनाएंगे
मंडल के सभी सदस्य संगठनों के साथ जल्द ही बैठक करने जा रहे हैं। उसी में मांगें मनवाने की रणनीति तय करेंगे। 
सुधीर नायक, अध्यक्ष, मप्र अधिकारी-कर्मचारी अध्यक्षीय मंडल

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