UP में योगी सरकार के खिलाफ वरिष्ठ कर्मचारी लामबंद

इलाहाबाद। कमजोर प्रर्दशन के आधार पर 50 से अधिक उम्र वाले कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के नाम पर नौकरी से बाहर किए जाने के फरमान से सरकारी विभागों में हड़कंप मचा है। अगर ऐसा हुआ तो जिले के तमाम सरकारी विभागों में तैनात 40 फीसदी कर्मचारियों की नौकरी झटके में चली जाएगी और विभागों में भी कर्मचारियों का टोटा हो जाएगा। मुख्यमंत्री के इस फैसले से नाराज कर्मचारी संगठनों ने आंदोलन की रणनीति बनानी शुरू कर दी है।

मुख्य सचिव की जारी आदेश में सभी विभागों को 50 वर्ष से अधिक आयु वाले कर्मचारियों की सूची तैयार करने के लिए कहा गया है। मानक पर खरे न उतरने वाले कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी। मुख्य सचिव राजीव कुमार ने दक्षता के आधार पर सेवानिवृत्त किए जाने वाले कर्मचारियों की सूची भी 31 जुलाई तक मांगी है। यानी अब एक महीने से भी कम समय रह गया है। इससे सरकारी विभागों में हड़कंप मचा है।

इलाहाबाद में ही कलक्ट्रेट, विकास भवन, गवर्नमेंट प्रेस, पीडब्ल्यूडी, सिंचाई समेत तमाम सरकारी विभागों में तकरीबन 22 हजार कर्मचारी और इनमें से 10 हजार यानी 40 फीसदी कर्मचारी 50 साल की उम्र पार कर चुके हैं। ऐसे में इनकी नौकरी पर संकट मंडरा रहा है। ज्यादातर विभागाें में वर्षों से कोई भर्ती नहीं हुई है। मृतक आश्रित या अन्य माध्यम से भी भर्ती प्रक्रिया लगभग ठप पड़ी हुई है। अगर झटके से कर्मचारी नौकरी से बाहर कर दिए गए तो सरकारी मशीनरी भी चरमरा जाएगी।

उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी महासंघ के जिलाध्यक्ष नरसिंह का कहना है कि ज्यादातर विभागाें में कर्मचारियाें की भारी कमी है। ऐसे में कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने से यह समस्या और बढ़ेगी। उन्होंने सरकार के इस फैसले को तानाशाही बताते हुए हर स्तर विरोध की बात कही। इसके विरोध में सोमवार को डीएम को ज्ञापन सौंपा जाएगा। वहीं, लखनऊ में भी कर्मचारियों की प्रदेश स्तरीय बैठक होने जा रही है।

अनिवार्य सेवानिवृत्ति यानी समय से पहले रिटायरमेंट। इससे रिटायर होने वाले कर्मचारियों को पेंशन का नुकसान होगा। साथ ही ग्रेच्युटी समेत अन्य सेवानैवृत्तिक लाभों में भी नुकसान उठाना पड़ेगा। अचानक सभी प्रकार के भत्ते मिलने बंद हो जाएंगे।

सरकार ने दक्षता के आधार पर कर्मचारियाें को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने का आदेश दिया है, लेकिन इसका मानक क्या होगा यह अफसरों के लिए भी पहेली बना हुआ है। खास यह कि बाहर किए जाने वाले कर्मचारियों की सूची तैयार करने के लिए केवल एक महीने का समय दिया गया है। इससे भी कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं। आशंका है कि  नेताओं और अफसरों के आगे-पीछे घूमने वाले और दबंग कर्मचारी ही बच पाएंगे।

कर्मचारियों का कहना है कि सरकार की मंशा भी इसमें साफ नहीं दिख रही। सरकार का यह फरमान दूसरी विचारधारा वाले कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के जिलाध्यक्ष अजय भारती का कहना है कि कर्मचारियों की सूची तैयार करने के लिए मात्र एक महीने का समय मिला है। अफसरों के पास आखिर कौन सा फार्मूला है, जिससे वे प्रदेश के 18 लाख से अधिक कर्मचारियों की 25 साल की नौकरी का लेखाजोखा इतने कम समय में खंगाल लेंगे। सरकार मनमानी कर रही है।

50 साल से अधिक उम्र के कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने के फैसले से नौकरी देने की उम्र को लेकर भी बहस छिड़ गई है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पीसीएस समेत अन्य भर्तियाें के लिए आवेदन की उम्र 40 वर्ष है। समूह ग के कई पदाें के लिए भी 40 वर्ष तक आवेदन किए जा सकते हैं। ओबीसी और एससी-एसटी अभ्यर्थियों को उम्र में पांच साल तक की छूट मिलती है। इसके अलावा भर्ती प्रक्रिया पूरी होने में कम से कम डेढ़ से दो वर्ष लग जाते हैं। ऐसे में यदि 50 वर्ष की आयु में अनिवार्य सेवानिवत्ति दिए जाने का फार्मूला आगे भी जारी रहा तो कई कर्मचारी तो चार-पांच वर्ष की नौकरी के बाद ही रिटायर हो जाएंगे।

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