भारत–चीन विवाद और PUBLIC MEDIA

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत-चीन के बीच चल रहे डोकलाम विवाद सीमा और विदेश मंत्रालय से अधिक व्हाट्स एप पर दिख रहा है। व्हाट्सऐप पर सक्रिय तमाम समूहों समेत विभिन्न सोशल मीडिया मंचों पर पहले ही यह अभियान शुरू हो चुका है कि भारतीय नागरिक चीन में उत्पादित वस्तुओं को खरीदने से इनकार कर इस पड़ोसी देश को करारा सबक सिखा सकते हैं। सवाल यह है कि इस तरह की मुहिम का चीनी उत्पादों के निर्यात या निवेश पर क्या वाकई में कोई गंभीर असर पड़ सकता है? 

इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में चीन से होने वाले निवेश में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2011 में भारत में निवेश करने वाले देशों में चीन 37वें स्थान पर हुआ करता था लेकिन अब यह 17वां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक बन चुका है। देखने में यह आंकड़ा तीव्र वृद्धि को दर्शा रहा है लेकिन भारत में चीन के कुल निवेश का आकार और सालाना पूंजी प्रवाह वास्तव में काफी कम है। भारत में होने वाले कुल विदेशी निवेश में चीन की हिस्सेदारी या चीन की तरफ से विदेश में होने वाले निवेश में भारत को मिलने वाली राशि लगभग नगण्य है।

इन आंकड़ों पर गौर कीजिए। अप्रैल 2011 और मार्च 2017 के बीच भारत में कुल 332 अरब डॉलर का विदेशी निवेश हुआ। इनमें चीन की हिस्सेदारी महज 1.63 अरब डॉलर ही रही है। वर्ष 2010-11 में चीन ने भारत में केवल 20 लाख डॉलर का निवेश किया था। उस साल भारत में हुए 14 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को देखें तो चीन का अंशदान बहुत ही कम था। इसके विपरीत वर्ष 2014-15 में यह 49.5 करोड़ डॉलर था तो 2015-16 में 46.1 करोड़ डॉलर रहा था। लेकिन चीनी निवेश में यह बढ़ोतरी तब हुई थी जब भारत में विदेशी निवेश काफी तेजी से बढ़ रहा था। 

असल में, भारत में चीनी निवेश में बढ़ोतरी की रफ्तार भारत में हुई कुल एफडीआई वृद्धि से काफी धीमी थी। वर्ष 2014-15 में भारत में कुल 31 अरब डॉलर और 2015-16 में 40 अरब डॉलर का एफडीआई आया था। वैसे चीन से दूसरे देशों में करीब 100 अरब डॉलर का एफडीआई होने का अनुमान है। इसमें भारत का हिस्सा 0.5 अरब डॉलर से भी कम है। ऐसे में क्या वाकई में चीन को भारत के साथ सीमा विवाद बढऩे पर अपने विदेशी निवेश के बारे में चिंतित होने की जरूरत है? चीनी अधिकारियों के दिमाग में यह बात भी आएगी कि वित्त वर्ष 2016-17 में तो भारत में चीन का एफडीआई फिर से कम होकर 27.7 करोड़ डॉलर पर आ गया।

भारत में उसका निवेश बड़ा दिख सकता है लेकिन चीन के दृष्टिकोण से देखें तो भारत के साथ उसके व्यापारिक रिश्ते या भारत में उसका निवेश अभी इतने बड़े पैमाने पर नहीं पहुंचा है कि उसका नेतृत्व सीमा विवाद पर इस पहलू के असर को लेकर अधिक चिंतित हो। सच तो यह है कि भारत में चीन का निवेश और चीनी आयात लगातार दो साल तेज रहने के बाद पिछले वित्त वर्ष में गिरावट पर रहा था। चीन के साथ भारत के कारोबारी रिश्ते का आकार छोटा है, पर देश की सुरक्षा का मुद्दा बड़ा और अहम है। सरकार को इस विषय पर कोई स्पष्ट बात कहनी चहिये जिससे पब्लिक मीडिया के सोच  को सही दिशा मिल सके।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !