रेप मामले में MEDICAL रिपोर्ट जरूरी नहीं, पीड़िता के बयान काफी है: हाईकोर्ट

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चिकित्सकीय साक्ष्यों की कमी पर यौन अपराध की पीड़ितों को न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता और महिला की मौखिक गवाही पर भरोसा किया जा सकता है। कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरि शंकर की पीठ ने कहा कि दिल्ली में 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार मामले के बाद 2013 में बलात्कार के कानून में किए गए संशोधन को खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह कई सालों का प्रयास था। 

कोर्ट ने ये टिप्पणियां शिक्षाविद मधु पूर्णिमा किश्वर और बलात्कार की दो पीड़ितों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कीं, जिनमें आरोप लगाया गया कि यौन अपराधों से जुड़े कानून के संशोधनों का व्यावहारिक रूप से दुरुपयोग किया जा रहा है। याचिकाओं में उन संशोधनों को चुनौती दी गई जिनमें बलात्कार की परिभाषा का दायरा बढ़ाकर इसमें वे यौन अपराध भी शामिल कर लिए जिनमें मेडिकल साक्ष्य हासिल करना मुश्किल होता है। 

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ओरल रेप, डिजिटल रेप जैसे मामलों में मेडिकल प्रूफ मुश्किल है। इस पर पीठ ने कहा, 'इस तरह के ज्यादातर मामलों में, कोई चिकित्सकीय साक्ष्य नहीं होता है। पीड़िता की मौखिक गवाही पर्याप्त होती है। सिर्फ इसलिए कि कुछ झूठे मामले दायर हुए, हम असली पीड़ितों को न्याय से वंचित नहीं कर सकते।' 

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