फिल्म रिव्यु. एक गहरे लाल रंग वाली लिपस्टिक विद्रोह का जरिया कब बन जाती है यह पता ही नही चलता। महिलाओं के अंदर चल रही उथल-पुछल, अपमान और गुस्से को पी जाने वाली संवेदनशीलता के बाद जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है तब क्या होता है। लिपस्टिक अंडर माई बुर्क़ा' पर पहला ख्याल ना फिल्म की कास्ट का आता है ना निर्देशिक का और ना ही निर्माता का, सबसे पहले याद आते हैं 'संस्कारी सीबीएफसी चीफ' पहलाज निहलानी, जिन्होंने इस फिल्म पर सबसे ज्यादा ऐतराज़ जताया था और कहा था ये महिला प्रधान फिल्म है, जिसमें औरतों की फेंटसी दिखायी गई है'.
इस फिल्म में औरतें किस तरह से मर्दों की उस सोच में जीवन गुज़ार रही हैं, जहां मर्द तय करता है कि औरतों को छूट दी जाए या नहीं. समाज में जो दिखेगा, वही कहानी की शक्ल इख़्तियार करेगा. ऐसे में लाज़मी है ऐसी फिल्मों से पहलाज निहलानी या वैसी सोच रखनेवाले तो डरेंगे ही.
यही कहानी है ''लिपस्टिक अंडर माय बुर्का'' की। फिल्म रिलीज़ होने से पहले शुरुआत से ही सेंसर द्वारा बैन किए जाने से लेकर बैन हटाए जाने तक चर्चा में रही जो फिल्म के लिए अच्छी बात साबित हुई है। एक तरह से फिल्म को काफी प्रमोशन भी मिल गया। खास तौर पर फिल्ममेकर्स के लिए जिन्होंने बैन को लेकर अपनी आवाज बुलंद की और आखिरकार उनकी जीत भी हुई। यह कहा जा सकता है कि, इस फिल्म को देखना बिल्कुल भी समय की बर्बादी नहीं है चूंकि यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है।
महिलाओं की गहरी सोच के साथ पॉलीटिकल और पॉवरफुल लुक को इस फिल्म में दर्शाया गया है जो आज जरूरी भी है। कहानी चार महिलाओं की है जो भोपाल से हैं। इन महिलाओं की जिंदगी आम महिलाओंं की तरह आगे बढ़ती है। शुरुआत में फिल्म दर्शकों के सामने उस दृश्य को पेश करती है जिसमें वो समाज और संस्कृति में अपने आपको ढालकर अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाती हैं जो हर महिला करती है। लेकिन अपने आपको बंधा पाकर वो अपनी आवाज उठाती है। इस दौरान उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह बुआजी के किरदार में हैं। उन्हें लोभी कॉरपोरेटर्स और मकान मालिकों द्वारा परेशान होना पड़ता है। बुआजी वैसे तो हवाई महल का एक तरह से मॉरल सेंटर हैं, चूंकि वो एक पवित्र नारी हैं जो विधवा हो चुकी है। बात करें कोंकण सेनशर्मा की तो वो तीन बच्चों की मां हैं और सुशांत सिंह की पत्नी। सुशांत की सोच यह है कि पत्नी पर हुक्म जमाया जा सकता है क्योंकि वो बनी ही इसके लिए है। साथ ही रात में बिस्तर गर्म करने के लिए भी। यू कहें कि बीवी हो, बीवी की तरह रहो।
अहाना कुम्रा जो लीला के किरदार में हैं सेक्स को गलत नहीं मानती इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी को पता चल भी जाता है कि उसका बॉयफ्रेंड विक्रांत मेस्सी है। लीला का पति वैभव तत्ववादी है। सबसे छोटी कॉलेज गोइंग प्लाबिता बोरठाकुर हैं जिन्होंने रिहाना का किरदार निभाया है। वो अमेरिकन सिंगर मिले साइरस की बड़ी फैन हैं। ये लड़की शुरुआत से ही अपनी आवाज खुलकर नहीं उठा पाती। यह फिल्म देखकर आपको यह जरूर अहसास हो जाएगा कि हां, उम्र सिर्फ एक नंबर गेम है। अगर सपनों को सच करने की इच्छाशक्ति है तो कोई नहीं रोक सकता। यह जरूर है कि फिल्म में फ्रैंक तरीके से यह सब दर्शाया गया है। जिस तरह से बुआजी का जागना जो अपना नाम ही भूल चुकी थी वो एक रहस्य से पर्दा उठना जैसा ही है। बतौर पत्नी कोंकण सेनशर्मा आगे बढ़ना और उड़ना चाहती है।
कब बुआजी की लिपस्टिक जिसे वो लिपिस्टिक कहती हैं विद्रोह का एक जरिया बन जाती है पता ही नहीं चलता। यह कहा जा सकता है कि, फिल्म में सिस्टरहुड को दर्शाया गया है। चार महिलाएं उस रास्ते पर चल पड़ती हैं जिस पर जाने से उन्हें मना किया जाता है। पर एक दूसरे का सहारा लेकर वो अपनी मंजिल पा लेती हैं।
औरतों की अपनी मर्ज़ी की कोई बख़त नहीं है, लेकिन इन चारों में अलग-अलग किस्म की झिझक हो सकती है लेकिन वक्त के साथ अच्छाइयां और कमियों के साथ ये कैसे अपनी हिम्मत पर काबू पाती हैं, ये है फलसफा 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्क़ा' का. सिर पर से पर्दा हटा के सपने देखने होंगे, लिप्स्टिक की लाली छिपाके लगाने की ज़रूरत नहीं है. बहुत सादगी और व्यंग के साथ निर्देशिक अलंकृता श्रीवास्तव ने अपनी बात रखी है.