सरकार का दूसरा नाम है LAZY: हाईकोर्ट की गंभीर टिप्पणी

संदीप गुप्ता/नई दिल्ली। देश का कानून आम और खास लोगों के लिए एक समान है। इसे महज इसलिए नहीं बदला जा सकता है कि याचिका केंद्र सरकार की तरफ से लगाई गई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को कहा कि उसका दूसरा नाम सुस्त है। यह मामला 1857 की क्रांति के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 2007 में आयोजित की गई ट्रेन प्रदर्शनी से जुड़ा है। इसके लिए जिस कंपनी को टेंडर दिया गया था उसे 90 लाख के बिल में से करीब 25 लाख रुपये दिए ही नहीं गए। निचली अदालत ने केंद्र सरकार को कंपनी को ब्याज के साथ 40 लाख रुपये देने का आदेश दिया था, जिसे अब सरकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति वाल्मीकि जे मेहता की पीठ ने कहा कि निश्चित तौर पर इस मामले में सरकार को नुकसान उठाना पड़ेगा, लेकिन देश का कानून सर्वोपरि है। इस मामले में सरकार उन सभी अधिकारियों की पहचान कर कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है जिनके कारण निचली अदालत के समक्ष उसकी तरफ से जवाब ही दाखिल नहीं किया गया और अदालत को मजबूरन एकतरफा फैसला सुनाना पड़ा। एकतरफा फैसले और पक्ष रखने का आखिरी समय समाप्त होने को तभी बदला जा सकता है जब याची इसके लिए उपयुक्त कारण बताए।

सरकार का कहना था कि जून 2013 में उसकी तरफ से बयान दर्ज कराया गया था, लेकिन उसे रिकॉर्ड पर ही नहीं लिया गया। क्योंकि सितंबर 2012 में बयान दर्ज करने की प्रक्रिया बंद कर अदालत ने एकतरफा फैसला सुना दिया था। वकील बदलने की प्रक्रिया के कारण उसकी तरफ से समय रहते बयान दर्ज नहीं कराया जा सका। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि सिविल सूट करने के 14 माह बाद बयान दर्ज करने की प्रक्रिया खत्म की गई और अगस्त 2014 में सरकार द्वारा हाई कोर्ट में याचिका लगाई गई। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा की सरकार का दूसरा नाम सुस्त है।

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