सरपंच का चुनाव EVM से तो राष्ट्रपति चुनाव बैलेट पेपर से क्यों

सूरज कुमार बौद्ध। राष्ट्रपति चुनाव में जनप्रतिनिधियों द्वारा बैलेट पेपर का इस्तेमाल किए जाने पर सोशल मीडिया में एक बार फिर से ईवीएम मशीन के खिलाफ बहस उठ खड़ा हुआ है। इन दिनों ईवीएम मशीन के खिलाफ धीरे धीरे पुनः नए आंदोलन की शुरुआत हो रही है। ईवीएम मशीन के खिलाफ उठ रहे सवालों के पीछे वाजिब तर्क भी है। दुनिया के बहुत सारे विकसित देश ईवीएम मशीन का इस्तेमाल नहीं करते हैं क्योंकि इसे हैक किया जा सकता है। ईवीएम मशीन के खिलाफ बहुत सारे समाज सुधारकों तथा सामाजिक चिंतकों ने भी आवाज उठाई हैं। विपक्षी दल के अनेक राजनेताओं ने भी चुनाव प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल किए जा रहे ईवीएम मशीन पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी तथा मायावती द्वारा पिछले विधानसभा चुनाव में किए गए ईवीएम घोटाले संबंधी आरोप का समर्थन किया था। 

यह लोकतंत्र के लिहाज से बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनेता लोग जनता को विधायक और सांसद चुनने के लिए अपारदर्शिता का प्रतीक ईवीएम मशीन का इस्तेमाल करने पर मजबूर करते हैं और खुद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को चुनते वक्त बैलेट पेपर का इस्तेमाल करते हैं। यकीनन यह एक सोची समझी साजिश है।

ईवीएम मशीन के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत
गौरतलब है कि मार्च महीने में आए पांच विधानसभा चुनावों ( उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा) के परिणाम ने पूरे देश को आश्चर्यचकित कर दिया। भाजपा को उत्तर प्रदेश में 325 सीट तथा उत्तराखंड में 57 सीट और कांग्रेस मणिपुर में 28 सीट, गोवा 17 सीट तथा पंजाब में 77 सीट जीतकर बहुमत दर्ज करती है। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी समाजवादी पार्टी 54 सीट और जीत की प्रमुख दावेदार बहुजन समाज पार्टी 19 सीटों पर अपने जीत दर्ज कर सिमट गई। 

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती चुनाव के नतीजे को पूर्व निर्धारित तथा ईवीएम की जीत बताईं। इसके साथ भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला चैलेंज देते हुए कहती हैं कि अगर उनमें थोड़ी सी पारदर्शिता और हिम्मत है तो बैलेट पेपर से पुनः चुनाव कराएं। निर्वाचन आयोग मायावती के आरोप को बिना किसी जांच पड़ताल के तुरंत नकारते हुए कहता है कि ईवीएम मशीन में कोई धांधली नहीं हुई है। मायावती द्वारा ईवीएम मशीन में धांधली किए जाने सम्बन्धी बयान के बाद पूरे देश में ईवीएम मशीन के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन में तेजी आ जाती है। जहां-जहां वीवीपीएटी मशीन का इस्तेमाल किया गया था वहां अधिकांश जगह भाजपा बुरी तरह से हारी हुई थी। 

निर्वाचन कार्ड एवं ईवीएम को आधार कार्ड से लिंक करने की जरूरत
सरकार द्वारा प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के तहत पब्लिक सब्सिडी और अन्य लाभकारी योजनाओं को आधार कार्ड से जोड़ने का फैसला लिया गया है। LPG स्कीम, मनरेगा की मजदूरी, छात्रवृत्ति कन्या मदद योजना आदि सभी को आधार कार्ड से जोड़ते हुए आधार संख्या को बैंक अकाउंट से लिंक करने को अनिवार्य कर दिया गया है। बिजली बिल, पानी बिल, राशन कार्ड, पैन कार्ड आदि सभी आवश्यक दस्तावेजों को आधार संख्या से लिंक किया जा रहा है। नवंबर 2014 से सूचना तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा सिम कार्ड को भी आधार संख्या से लिंक संबंधित नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। 

मई 2015 में विदेश मंत्रालय यह सूचना जारी की थी कि सभी नागरिकों द्वारा पासपोर्ट को आधार संख्या से लिंक कराना जरूरी है। वर्तमान में आधार संख्या को प्रोविडेंट फंड से भी जोड़ना अनिवार्य कर दिया गया है। अब असली सवाल यह है कि आखिर चुनाव प्रक्रिया में धांधली को रोकने के लिए निर्वाचन कार्ड तथा ईवीएम मशीन को मतदाताओं के आधार संख्या से लिंक करने के लिए सरकार कोई कदम क्यों नहीं उठा रही है? आए दिन फर्जी वोट एवं फर्जी वोटर पकड़े जाते रहते हैं। कई कई जगह तो मरे हुए व्यक्ति के नाम से भी लंबे समय से वोट दिए जाते रहते हैं। आधार कार्ड का ईवीएम से जुड़ जाने पर वोटों की वैधता अंगूठे की छाप के मिलान के बाद ही होगा। इस तरह से फर्जी वोट तथा चुनाव में धांधली का झमेला ही खत्म हो जाएगा। 

इस संदर्भ में 3 मार्च 2015 को निर्वाचन आयोग ने नेशनल इलेक्टोरल रोल प्यूरिफिकेशन ऑथेंटिकेशन प्रोग्राम (NERPAP) के तहत रजिस्टर्ड मतदाताओं के फोटो को आधार संख्या से लिंक करने पर जोर दिया था। लेकिन उसके बाद सरकार तथा निर्वाचन आयोग दोनों ने इस महत्वपूर्ण कदम को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। अब केंद्र सरकार तथा निर्वाचन आयोग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराकर संवैधानिक मूल्यों में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए इस महत्वपूर्ण तथा पारदर्शी विकल्प पर विचार करके सकारात्मक निर्णय ले ताकि जनता का विश्वास स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव में बना रहे वरना चुनाव महज एक खेल बनकर रह जाएगा।

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