अतिउत्साही अध्यापक नेता एकजुट हो जाएं तो देर अब भी नहीं हुई है

अरविंद रावल/झाबुआ। यदि प्रदेश के अध्यापक नेताओ में फूट नही पड़ती ओर न ही अध्यापक नेता अलग अलग जाकर अपनी अपनी ढपली ओर राग अलापते तो प्रदेश का अध्यापक 4 सितम्बर 2013 के आदेश के बिंदु क्रमांक द 1 के अनुसार सितम्बर 2013 से छटे वेतनमान का लाभ ले सकता था। भले ही अध्यापको को 4 सितम्बर 2013 के आदेश से छटे वेतनमान का नगद लाभ सितम्बर 17 से मिलता लेकिन उक्त आदेश से अध्यापको का फायदा 7 जुलाई 17 के आदेश से अधिक ही होता। 

अध्यापक नेताओ की एकजुटता के आभाव व अतिमहत्वकांक्षाओ का नतीजा यह रहा कि जो वेतन सितम्बर 2017 में लेकर फायदे में रहते वही वेतन जुलाई 2017 में लेकर अध्यापक नुकसान मैं रहेंगे। अतिउत्साही अध्यापक नेताओ की जल्दबाजी के चक्कर मे दो महीने पहले छटे वेतनमान का नगद लाभ लेकर गणना 1.1.2016 से करवा बैठे है। जबकि यदि गम्भीरत्वपूर्वक  अतिउत्साही लाल सोचते व अध्ययन करते तो जुलाई 17 की जगह सितम्बर 17 से दो महीने लेट छटा वेतनमान का नगद लाभ लेते व इसकी गणना सितम्बर 2013 से खुद सरकार अपने 4 सितम्बर 2013 के आदेशानुसार करती। 

अतः अपने नेताओ के टुकड़ों में बटने का परिणाम यह निकला की प्रदेश के अध्यापको को न माया मिली न राम अर्थात न समानकार्य समान वेतनमान मिला न पूरा छटा वेतनमान मिला है। अभी भी वक्त है यदि प्रदेश के अध्यापक व उनके नेताओ एक नेतृत्त्व तले एकजुट हो जाये तो सरकार 4 सितम्बर 2013 के आदेशानुसार अध्यापकों का बहुत हद तक फायदा करवाया जा सकता है।

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