नई दिल्ली। देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे एस खेहर ने मंगलवार को मोदी सरकार से कहा कि वह उन लोगों को नोटबंदी में रद्द घोषित किए जा चुके नोटों को जमा करने का एक आखिरी मौका देने पर विचार करे, जो जायज वजहों से उन्हें जमा नहीं कर सके हैं। जस्टिस खेहर ने कहा कि वह पैसा नागरिक की संपत्ति के समान है और सरकार उसका इस तरह सफाया नहीं कर सकती है। सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार से जवाब मांगते हुए जस्टिस खेहर ने कहा, 'आपके पास समय था। आपने उसका उपयोग नहीं करने का रास्ता चुना। आपने ऐसा रास्ता क्यों चुना?' सॉलिसीटर जनरल ने शुरुआत में कहा कि सरकार ने एक नीतिगत निर्णय किया है और इंडिविजुअल मामलों पर विचार नहीं किया है। हालांकि बाद में उन्होंने वादा किया कि वह सरकार से पूछकर बताएंगे कि ऐसी कोई अथॉरिटी तय की जा सकती है या नहीं, जिससे लोग संपर्क कर सकें।
सरकार के दूसरे सबसे सीनियर वकील रंजीत कुमार ने यह दलील रखने की कोशिश की थी कि सरकार ने जमीनी हालात को देखते हुए पहले के आदेशों की समीक्षा की और उन्हें रद्द किया। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से काफी काला धन बाहर आया है। हालांकि अदालत के दबाव उन्होंने दलील पर जोर नहीं दिया और अब वह 18 जुलाई को अदालत के सामने सरकार की राय रखेंगे।
जस्टिस खेहर ने कहा कि पैसा 'प्रॉपर्टी' की तरह है। संपत्ति के अधिकार को बुनियादी अधिकार का दर्जा दिया गया था, लेकिन अब यह कानूनी अधिकार है। बिना उचित प्रक्रिया अपनाए और बिना उचित मुआवजा दिए हुए नागरिकों को उनकी प्रॉपर्टी से वंचित नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस खेहर ने इस तरह संकेत दिया कि सरकार वाजिब मामलों पर गौर कर सकती है। देश के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हो सकता है कि कोई व्यक्ति विदेश में फंसा रह गया हो या बेहद बीमार हो या जेल में हो। उन्होंने कहा, 'अगर मैं यह साबित कर दूं कि यह मेरा पैसा है तो आप मुझे मेरी प्रॉपर्टी से वंचित नही कर सकते हैं। ऐसा करना गलत होगा।'
कुमार ने यह दलील देने की कोशिश की थी कि सरकारी नोटिफिकेशन में ऐसी किसी विंडो की बात नहीं की गई थी, लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि इसकी व्यवस्था होनी चाहिए थी। जस्टिस खेहर ने कहा कि सरकार को पक्का करना चाहिए कि कोई मामला वैध है या नहीं और फिर निर्णय करना चाहिए। जिन लोगों ने ऐसी छूट की मांग की है, उनमें विदेश में बसे कुछ भारतीय, अपने पति की मृत्यु के महीनों बाद एक लाख रुपये का पता पाने वाली एक महिला और बेहद बीमार एक महिला जैसे लोग शामिल हैं।
इन सभी ने अदालत से कहा है कि 31 दिसंबर की डेडलाइन को उन्होंने पीएम और सरकार के इन वादों को देखते हुए गंभीरता से नहीं लिया था कि नोट 31 मार्च 2017 तक आरबीआई के पास जमा कराए जा सकते हैं। हालांकि आरबीआई ने अपने पास अधिकार न होने का हवाला देकर उन्हें लौटा दिया और सरकार ने भी उनकी बात नहीं सुनी।