गंभीर बीमार होता डाक्टरी पेशा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत में डाक्टरों की दशा खराब हो रही है। सर्वोत्तम सेवा के व्यवसाय में बदल जाने से स्थिति कितनी खराब हो गई है इसका अंदाज हाल ही में हुए एक सर्वे से लगाया जा सकता है। इंडियन मेडिकल असोसिएशन ने एक सर्वे करके बताया है कि देश में तीन चौथाई से ज्यादा डॉक्टर तनाव में हैं। 62.8 प्रतिशत डॉक्टरों को मरीज देखते डर लगता है, 57 प्रतिशत डॉक्टर प्राइवेट सिक्यॉरिटी लेना चाहते हैं, जबकि 46 प्रतिशत हिंसा से डरे हुए हैं। आईएमए ने यह सर्वे 15 दिनों में 1681 डॉक्टरों पर किया। सभी डॉक्टरी के अलग-अलग क्षेत्रों से थे और ज्यादातर प्राइवेट सेक्टर में थे। हिंसा से डरने वालों में 24.2 प्रतिशत को मुकदमे का डर सताता है, जबकि 13.7 प्रतिशत डॉक्टरों को लगता है कि उन पर आपराधिक मामले ठोक दिए जाएंगे। 56 प्रतिशत डॉक्टर तो इसके चलते  सात घंटे की नींद भी नहीं ले पा रहे हैं। 

इस सर्वे में एक और बात निकलकर सामने आई है कि हमेशा सारी गलती मरीजों या उनके रिश्तेदारों की नहीं होती है। डाक्टरों का बातचीत और काम करने का तरीका भी गलत होता है। आईएमए ने इससे पहले भी एक रिसर्च कराई थी, जिसमें पाया गया था कि डॉक्टरों को मरीजों से ठीक से बात करने का प्रशिक्षण देना जरूरी है। आईएमए की ही एक और रिसर्च में सामने आया था कि डॉक्टरों पर ज्यादातर हमले तब होते हैं, जब वे मरीज की अधिक जांच कराते हैं या देखने में देर लगाते हैं। ये बड़े कारण हैं। अपनी व्यवसायगत खामियों को मरीजों के सर मढना, अपने को सर्वोत्कृष्ट मानना भी इस प्रकार के झगड़ों के पीछे है। सेवा का भाव बाज़ार में बदल रहा है।

डॉक्टर्स डे पर आईएमए ने चिंता जताई है कि डाक्टरी धंधे की गरिमा दांव पर लगी हुई है। दरअसल चिकित्सा के क्षेत्र में हमला चौतरफा है। देश की चिकित्सा शिक्षा प्रणाली अपनी गिरती क्वॉलिटी को लेकर पिछले एक दशक से दुनिया भर के मीडिया का निशाना बना हुई है। सन 2010 से 2016 तक 69 से अधिक मेडिकल कॉलेज और टीचिंग हॉस्पिटल नकल कराने और भर्ती में रिश्वत खाने में पकड़े गए हैं। देश के कुल 398 मेडिकल कॉलेजों में से हर छठे पर इस तरह के मामलों का मुकदमा चल रहा है। आईएमए का अनुमान है कि अभी देश में जितने लोग डॉक्टरी कर रहे हैं, उनमें लगभग आधों के पास इसकी पूरी ट्रेनिंग नहीं है। और तो और, फर्जी डिग्री बेचकर डॉक्टर बनाने का धंधा भी सिर्फ इसी देश में होता है, और उसके पीछे दिमाग किसी डाक्टर का ही होता है। इस सब को नियंत्रित करने वाली संस्था भारतीय चिकित्सा परिषद के किस्से कहानी जग जाहिर है। ऐसे में डॉक्टरों का डर भगाने के लिए एक ऐसी नई व्यवस्था की जरूरत है, जो डाक्टरों में सेवा और मरीजों में सम्मान का भाव पैदा कर सके। डाक्टर हो या मरीज हिंसा का सहारा कोई तब ही लेता है, जब अति हो जाये। डाक्टर मरीज और सरकार तीनो को अति से बचना चाहिए। देश में चिकित्सा शिक्षा की गिरती साख को रोकने में डाक्टरों की भूमिका अहम है, उन्हें लालच को तिलांजलि देना चाहिए। इस सबके मूल में लालच ही पहला कारक है,जो डाक्टरों को बीमार बनाता है और बना रहा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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