चिंता मत कीजिए, भारत के पास भरपूर गोला-बारूद है: रक्षामंत्री

नई दिल्ली। रक्षामंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा को आश्वस्त किया है कि CAG की ताजा रिपोर्ट से चिंतित होने की जरूरत नहीं क्योंकि वो 2013 में सौंपी गई रिपोर्ट की अनुवर्ती है। 2017 में भारत के पास भरपूर गोला बारूद है। यहां तक कि सेना के उप प्रमुख को सीधी खरीददारी के अधिकार दे दिए गए हैं। अब उन्हे रक्षा मंत्रालय की अनुमति का इंतजार नहीं करना होता। बीते सप्ताह आई नियंत्रक एवं लेखा महापरीक्षक की रिपोर्ट में जिक्र किया गया था कि भारतीय सेना गोला-बारूद की कमी से जूझ रही है। खासतौर से टैंक व तोपों की कमी है और 152 प्रकार के हथियारों में से 121 युद्ध के आवश्यक न्यूनतम मानकों के अनुरूप नहीं हैं।

राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान सपा सांसद रामगोपाल यादव ने यह मामला उठाया। उन्होंने कहा कि सीमा पर पाकिस्तान और चीन की ओर से बढ़ते तनाव को देखते हुए हथियारों की कमी गंभीर चिंता का विषय है। देश के पास दस दिनों से अधिक के लिए हथियार नहीं है। वहीं कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि तीन वर्ष से सरकार ने कुछ नहीं किया। उन्होंने पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की निंदा करते हुए उन्हें ‘नॉन परफॉर्मर’ बताया।

हालांकि, रक्षामंत्री ने कहा कि इस रिपोर्ट का जिक्र एक खास समय के हिसाब से किया गया है। जेटली ने कहा, "एक विशेष रिपोर्ट 2013 में दी गई थी और इसकी अनुवर्ती एक रिपोर्ट हाल में जमा की गई है, इसे लोक लेखा समिति के समक्ष रखे जाने की संभावना है। हम कैग की रिपोर्ट पर चर्चा नहीं करते, लेकिन हम रिपोर्ट को ध्यान में रखेंगे।

उन्होंने कहा कि रिपोर्ट का संदर्भ एक समय विशेष से है। इसके बाद से पर्याप्त रूप से महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। प्रक्रिया सरल हो गई है, शक्तियों को विकेंद्रीकृत किया गया है और सशस्त्र बलों को यथोचित और पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया गया है। सरकार ने हाल ही में सेना के उप प्रमुख को सीधे तौर पर छोटी लड़ाई और गहन युद्ध के लिए 46 तरह के युद्धोपकरण रक्षा मंत्रालय की अनुमति के बिना खरीदने की शक्ति प्रदान की है।

कैग की रिपोर्ट में गोला-बारूद के भंडारण की दिशा में 2013 के बाद अपर्याप्त कदम उठाए जाने के बारे में इशारा किया गया है। संचालन की जरूरतों के मुताबिक 2019 के लिए तय लक्ष्य के मुताबिक, सेना को 40 दिनों के बड़े युद्ध के लिए पर्याप्त गोला-बारूद से लैस होना चाहिए।

गौरतलब है कि सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "152 तरह के गोला-बारूदों में से केवल 31 (21 फीसदी) ही मंजूरी के स्तर पर मिला। संतुलित 121 तरह का गोला-बारूद मंजूरी स्तर से अभी भी काफी नीचे है। रक्षा मंत्रालय द्वारा अनुमोदित मानकों के मुताबिक, भारतीय सेना को भीषण युद्ध के लिए कम से कम 40 दिनों का गोला-बारूद रखना होता है।

सेना ने भी गोला-बारूद का स्तर तय किया है, जिसे न्यूनतम स्वीकार्य जोखिम स्तर (एमएआरएल) कहते हैं, जिसके हिसाब से 20 दिनों के युद्ध के लिए गोला-बारूद रखना जरूरी है लेकिन सीएजी ने पाया है कि कई विस्फोटकों के मामले में इस स्तर (एमएआरएल) का भी खयाल नहीं रखा गया। सीएजी ने सेना को मार्च 2013 से लेकर अब तक अपर्याप्त मात्रा में गोला-बारूद की आपूर्ति के लिए ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) को कड़ी फटकार लगाई है।

सीएजी ने कहा कि उसने साल 2015 में विस्फोटक प्रबंधन पर एक रिपोर्ट में गहरी चिंता जताई थी, लेकिन ओएफबी द्वारा डब्ल्यूडब्ल्यूआर विस्फोटकों की आपूर्ति की उपलब्धता को सुनिश्चित करने को लेकर कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक, "ओएफबी द्वारा निर्माण लक्ष्य को चूकने का काम जारी है। इसके अलावा, ओएफबी को छोड़कर अन्य कंपनियों से खरीद से संबंधित अधिकांश मामले जनवरी 2017 से ही लटके हुए हैं, जिसकी शुरुआत सेना मुख्यालय ने 2009-13 के दौरान की थी।

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