कांग्रेस को कुछ पाने की कोशिश में लगना चाहिए

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कांग्रेस में इस्तीफों का दौर चल रहा है। अम्बिका सोनी द्वारा हिमाचल में किये गये रिक्त स्थान कांग्रेस ने सुशील कुमार शिंदे की नियुक्ति कर दी है। गुजरात में समीकरण उलझ गया है। शंकर सिंह वाघेला के इस्तीफे ने नये सवाल खड़े किये हैं। क्या सोनिया गांधी के विश्वासपात्र और उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के गुजरात से राज्यसभा में पुनर्निर्वाचित होने के रास्ते में मुश्किलें आ सकती हैं? वाघेला पार्टी की तरफ से आगामी चुनाव में स्वयं को सीएम पद का उम्मीदवार न घोषित किए जाने और पार्टी छोड़ने पर मजबूर होने का बदला अहमद पटेल के रास्ते का रोड़ा बन कर ले सकते हैं?  

जानकार कहते है गुजरात के 57 में से लगभग दर्जन भर कांग्रेस विधायक उनके वफादार हैं। अगर उन्होंने राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर दी तो कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की साख में बट्टा लग सकता है? वाघेला की नाराजी यूँ ही नही है। वाघेला को न तो सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी मिलने का समय दिया और दिल्ली गये ‘बापू’ (वाघेला को गुजरात में आदर से बापू कहा जाता है) राजघाट बापू की समाधि पर मत्था टेककर बैरंग वापस हो गए।

जानकार कहते है कि उनको कांग्रेस पार्टी में लेना ही बड़ी भूल थी। उन्होंने सीएम बनने की महत्वाकांक्षा के चलते ही अपने ही साथी केशुभाई पटेल से विद्रोह करके कांग्रेस का दामन थामा था। 1995 में भाजपा को जिताने में अहम योगदान देने वाले वाघेला की जगह जब दिग्गज पटेल नेता केशुभाई को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया था। तो वह अपमान वाघेला से सहन नहीं हुआ और पार्टी से बगावत करके 1996 में उन्होंने अपनी ‘राष्ट्रीय जनता पार्टी’ बनाकर सीएम की कुर्सी पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसका आगे चलकर कांग्रेस में विलय हो गया।

कांग्रेस पर ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ का तंज कसने वाले वाघेला का दावा यह है कि पार्टी ने उन्हें निकाला है जबकि कांग्रेस कह रही है कि यह वाघेला का स्वयं का निर्णय है। मामला चाहे जो भी हो, वाघेला के पार्टी छोड़ने का खामियाजा कांग्रेस को गुजरात में भुगतना पड़ेगा। गुजरात के प्रभारी अशोक गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी वाघेला को सीएम पद का उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं थे क्योंकि इससे राज्य के अन्य कांग्रेसी दिग्गज खफा हो जाते। वैसे भी मध्यप्रदेश की भांति गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर चार प्रमुख गुटों की आपसी खींचतान हावी रहती थी। ये हैं- भरत सिंह सोलंकी गुट, शक्ति सिंह गोहिल गुट, अर्जुन मोधवाडिया गुट और शंकर सिंह वाघेला गुट। इसलिए अब भी नहीं कहा जा सकता कि वाघेला के अलग हो जाने से कांग्रेस की गुटबाज़ी ख़त्म हो जाएगी।

अन्य राज्यों से मिल रहे संकेत भी कांग्रेस के लिए शुभ नही कहे जा सकते। वैसे भी कांग्रेस के पास अब खोने को कुछ नही है, और पाने की आधी अधूरी इच्छा केंद्र और राज्य में बिखरे हर गुट को है।
 श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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