2 भाईयों ने नग्नावस्था और 1 रात मेंं किया इस शिव मंदिर का निर्माण

भोपाल। भगवान शिव के चमत्कारी मंदिरों की श्रृंखला कभी पूरी नहीं हो सकती। मंदिरों के निर्माण के दौरान भी कई चौंकाने वाले प्रसंग सामने आते रहते हैं। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के भैंसदेही में पूर्णा नदी के किनारे स्थित प्राचीन सिद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर भी ऐसा ही एक मंदिर है। 11वीं सदी में बनाया गया यह मंदिर महिष्मति साम्राज्य की अद्भुत कृति है। कहा जाता है कि इस मंदिर को 2 भाईयों ने मिलकर बनाया था। यह निर्माण मात्र 1 रात में किया गया। इस मंदिर का गुंबद एक श्राप के कारण अधूरा छूट गया और आज तक अधूरा है। कहा जाता है कि दोनों भाई भी पत्थर की मूर्तियों में बदल गए थे। 

यह है चमत्कारी शिव मंदिर की अद्भुत कथा
11वीं और 12वीं सदी के मध्य भैंसदेही रघुवंशी राजा गय की राजधानी महिष्मति हुआ करती थी। किंवदंतियों और कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा गय भगवान शिव का भक्त था। जिसने उस वक्त के प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी भाई नागर-भोगर को महिष्मति में शिव मंदिर बनाने का आदेश दिया। नागर भोगर के बारे में बताया जाता है कि ये दोनों भाई नग्न अवस्था में मंदिर निर्माण कार्य करते थे। दोनों केवल एक रात में बड़े से बड़ा निर्माण कर देते थे लेकिन इन्हें एक श्राप मिला हुआ था कि अगर किसी ने इन्हें नग्न अवस्था में निर्माण करते हुए देख लिया तो वो पत्थर के बन जाएंगे। 

जब नागर-भोगर महिष्मति के इस शिव मंदिर का निर्माण कर रहे थे। तब एक रात उनकी बहन खाना लेकर अचानक निर्माण कक्ष में आ गई और उसने अपने भाईयों को देख लिया। जिसके बाद नागर-भोगर पत्थर के बन गए। मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया और इसका गुंबद फिर कभी नहीं बन सका।

पुराणों में मिला है उप ज्योतिर्लिंग का दर्जा, बेजोड़ है स्थापत्य
इस प्राचीन शिव मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को पौराणिक अभिलेखों में उप ज्योतिर्लिंग भी माना गया है। इस मंदिर का एक-एक पत्थर स्थापत्य कला की मिसाल है। इसमें सबसे खास मंदिर के गर्भगृह के सामने स्थापित नंदी की प्रतिमा है। जिसे पत्थर से ठोंकने पर उसमें से खनक की आवाज आती है। बताया जाता है कि इस मंदिर को कुछ इस तरह से बनाया गया है कि सूर्य की पहली किरण और पूर्णिमा के चांद की पहली किरण सीधे मंदिर के गर्भगृह को छूती है।

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