देशभक्ति की बातें करके 135 बाइक की ठगी कर ले गए 4 जालसाज

जबलपुर। इन दिनों सारे देश में देशभक्ति का खुमार छाया हुआ है। कभी पाकिस्तान को कभी चीन और कभी नोटबंदी या जीएसटी के कारण देश के हर आम नागरिक को यह प्रेरणा दे दी गई है कि वो देश के लिए अपना योगदान दे। देशभक्त बने। TILAKRAJ MOTORS के संचालक को इसी तरह की बातें करके 4 जालसाज 135 बाइक का चूना लगा गए। उन्होंने खुद को आईबी का अधिकारी बताया और देश के लिए शुरू होने वाले खुफिया मिशन के लिए 135 बाइक की डिलेवरी ले ली। बदले में 1 करोड़ रुपए का चैक दिया जो बाउंस हो गया। 

मामला मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर का है। यहां तिलकराज मोटर्स के संचालक ने पुलिस को शिकायत दर्ज कराई है कि पांच महीने तक चार जालसाज खुद को आईबी अफसर बताकर दोपहिया वाहनों की खरीदारी करते रहे। अचानक उनके शोरूम पर आना बंद हो गया, तो उसने आरोपियों द्वारा दिया गया एक करोड़ का चेक बैंक में लगाया। जिसके बाद फर्जीवाड़ें का खुलासा हुआ।

हालांकि, पुलिस ने भी तुरंत सतर्कता दिखाते हुए शोरूम में लगे सीसीटीवी कैमरों के आधार पर आनन-फानन में शनिवार की रात एक टीम सिवनी भेजी गई, जहां तीन आरोपियों को पकड़ लिया गया लेकिन मास्टरमाइंड पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहा।

आरोपियों ने जनवरी में पहली बार तिलकराज मोटर्स के संचालक से संपर्क किया था। उन्होंने फर्जी आईकार्ड दिखाकर खुद का परिचय आईबी के सब इंस्पेक्टर के रूप में दिया। आरोपियों ने कहा कि इंटेलीजेंस ब्यूरो देशभर में दोपहिया वाहनों की खरीदारी कर रहा है। गोपनीयता का हवाला देते हुए सरकारी अनुमति के दस्तावेज देने से मना कर दिया। जालसाजों ने संचालक को देशभक्ति के नाम पर पूरी तरह से अपने प्रभाव में ले लिया। उन्होंने एक करोड़ का चेक देते हुए उसे कैश कराने के लिए पांच महीने की लिमिट मांगी।

इस दौरान गोपनीयता बरतने का जिक्र करते हुए करीब 135 बाइक अलग-अलग लोगों के नाम से खरीदी गई। 135 बाइक की खरीद के बाद आरोपियों ने शोरूम आना बंद कर दिया, तो मामला बैंक और फिर पुलिस तक पहुंचा।

बताया जा रहा है कि शोरूम से बाइक लेने के बाद आरोपी खुद को एजेंसी का एजेंट बताकर लोगों ने बाइक बेच देते थे। बाइक बेचने में किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो इसके लिए बीएस-4 नियम की आड़ में लोगों को 60 हजार की बाइक 10 से 20 हजार तक कम दामों में सौदा किया जाता था। सौदा तय होने के बाद ग्राहक से आरोपी जरूरी दस्तावेज ले लेते थे। इन दस्तावेजों को शोरूम में जमा कराया जाता था और गाड़ी की डिलेवरी संबंधित व्यक्ति के नाम पर की जाती थी।

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