घर के मंदिर में प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा शुभ या अशुभ

सर्वव्यापी परमात्मा का स्मरण करना अपने आपको चार्ज करने जैसा है लेकिन शास्त्रों में हमेशा घर में मंदिर की स्थापना को निषेध माना गय़ा है। मंदिर से आशय वह स्थान जहां इष्टदेव की प्रतिमा स्थापित हो और प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई हो। कहा गय़ा है की जहां घर हो वहा मंदिर नही तथा जहा मंदिर हो वहां घर नही होना चाहिये। शास्त्रों मे धर्म को गुरु ग्रह से जोड़ा गय़ा है गुरु ग्रह से धर्म, पवित्रता, वरिष्ठता, ज्ञान तथा अध्यात्म देखा जाता है। यदि घर मे मनोरंजन हो तो धर्म और शिक्षा जो की गुरु ग्रह से जुड़ी है वह नही हो सकती। ऐसे ही शिक्षा तथा धर्मस्थल मे मनोरंजन नही हो सकता क्योंकि ये दोनो ही एक दूसरे के विपरीत है। शुक्र ग्रह माया का कारक ग्रह है। गुरु ग्रह से इसका शत्रुता है। एक देवगुरु तो एक दैत्यगुरु है इसीलिये दोनो का मिलान अशुभ परिणाम देता है।

घर मे मंदिर के अशुभ परिणाम
जहां हम रहते है वहां सभी प्रकार का खानपान अशुभ विचार तथा अपवित्रता जाने अनजाने मे हो ही जाती है। इसका प्रभाव मंदिर मे स्थापित देवी देवता को भी मिलता है। फलस्वरूप इसका परिणाम जितना शुभ मिलता है उतना अशुभ भी मिलता है। कई बार लोग घर मे भगवान की प्राण प्रतिष्ठा कर लेते हैं। प्रतिदिन आरती पूजा पाठ या अखंड ज्योत के कारण ईश्वरीय ऊर्जा का वास घर मे हो जाता है लेकिन जिस तरह मंदिर मे विधि विधान से पूजन होता है वैसा हम अज्ञानवश व्यस्तता या लापरवाही के कारण नही कर पाते। फलस्वरूप इसके दुष्परिणाम हमे भुगतने पड़ते हैं। ये उस तरह ही होता है जैसे हमने किसी को विधिवत घर मे बुलाकर कमरा दे दिया लेकिन उसकी देखभाल नही कर पा रहे है।

क्या करें
यदि घर मे ईशान कोण या उत्तर दिशा मे घर के बाहर खुली जगह हो जिसमे अपवित्रता ना हो सके तथा कोई पुरोहित विधिवत आकर भगवान की पूजा कर सके तो ही घर मे मंदिर बनाये। नही कर सकते है तो आपको डरने की आवश्यकता नही। आप उनकी पूजा पाठ नही करेंगे आरती नही करेंगे तो भगवान आप पर कोप करेंगे ऐसा बिल्कुल नही। भगवान उन मूक प्राणियों पर भी कृपा करता है जो उनके विषय मे जानते भी नही और उन लोगो पर भी वज्रपात हो जाता है जो दिनरात मंदिर मे ही रहते है। रामायण मे भगवान ने खुद कहा है की *कर्म प्रधान विश्व रची राखा* आप बुरे कर्म करेंगे और भगवान की आरती या नमाज पढ़कर अपना भला चाहेंगे तो सारे मौलबी और पंडित सबसे ज्यादा सुखी होना चाहिये। ध्यान रहे आपके सुखदुख का आधार आपके कर्म है।

पूजन ध्यान कैसे करे
अपने कुल देव गुरु या अपने इष्ट देव की प्रतिमा सामने रखकर गुरु का दिया मंत्रजाप स्त्रोत का पाठ करे। भजन कीर्तन करें अभिषेक और विशेष पूजन करना तथा आरती मे शामिल होना है तो पास के मंदिर मे चले जायें लेकिन घर मे यह कर्म न ही करे तो आपको शांति व शुकून प्राप्त होगा। ध्यान रहे सभी प्राणियों मे ईश्वर का वास है तथा उसका ध्यान स्मरण सदैव करना चाहिये लेकिन ध्यान रहे हमे घर को मंदिर तथा खुद को कर्मकान्डि पंडितजी नही बनना है।
प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"
9893280184,7000460931
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