अस्पताल सरकारी हो या प्राइवेट इलाज से मना नहीं कर सकता | LEGAL

राजेश चौधरी/नई दिल्ली। सड़क दुर्घटनाओं के मामले में केंद्र सरकार की स्पष्ट गाइडलाइंस से लेकर सुप्रीम कोर्ट के तमाम जजमेंट तक में खुले तौर पर कहा गया है कि अस्पताल सरकारी हो या प्राइवेट वो घायल मरीज का इलाज करने से इंकार नहीं कर सकता। उसे मरीज का नाम, पता, फीस, पुलिस इत्यादि तमाम औपचारिकताओं से पहले इलाज शुरू करना होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो संबंधित डॉक्टर या अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा एवं उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

परमानंद कटारा केस में सुप्रीम कोर्ट ने दी थी व्यवस्था
कानूनी जानकार ज्ञानंत सिंह बताते हैं कि किसी भी डॉक्टर और अस्पताल की पहली जिम्मेदारी है कि वह मरीज का इलाज करे। अगर किसी मरीज और घायल के पास पैसा नहीं है या फिर पुलिस केस का मामला है तो भी सबसे पहले इलाज करना होगा। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई आदेश हैं। साथ ही लॉ कमिशन की सिफारिश है। इसके अलावा केंद्र सरकार की गाइंडलाइंस है, जिसके तहत इलाज करना जरूरी है। 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने परमानंद कटारा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में व्यवस्था दी थी कि अगर कोई घायल शख्स इलाज के लिए अस्पताल लाया गया हो, तो उसे तुरंत मेडिकल सहायता दी जाए ताकि उसकी जिंदगी बचाई जा सके। कोई भी कानूनी प्रक्रिया बाद में शुरू की जाए, लेकिन पहले इलाज किया जाए ताकि किसी भी लापरवाही के बिना मौत को टाला जा सके। एडवोकेट ज्ञानंत का कहना है कि जजमेंट में उक्त व्यवस्था से साफ है कि कोई भी अस्पताल या डॉक्टर इलाज से मना नहीं कर सकता। अगर कोई इलाज से मना करता है तो उसके खिलाफ मेडिकल लापरवाही का केस बनेगा।

कोई कानून डॉक्टर को इलाज से नहीं रोकता
परमानंद कटारा केस में सुप्रीम कोर्ट के सामने केंद्र सरकार ने जो हलफनामा दिया था उसमें कहा गया था कि कोई भी कानूनी प्रावधान जैसे आईपीसी, सीआरपीसी या फिर एमवी एक्ट आदि डॉक्टरों को घायलों के इलाज से नहीं रोकता। कोई भी अगर घायल है तो कानून डॉक्टर को इलाज से नहीं रोकता। ऐसा कहीं भी प्रावधान नहीं है कि पुलिस के आने तक इलाज न किया जाए।

लॉ कमिशन ने 2006 में अपनी 201वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि सरकार घायलों के इलाज से मना करने वाले डॉक्टर और अस्पताल के खिलाफ क्रिमिनल केस में सजा दे। इसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने तमाम जजमेंट में कहा है कि घायलों का पहले इलाज किया जाए क्योंकि उसका जीवन बचाना सबसे पहले जरूरी है। लॉ कमिशन की रिपोर्ट में कहा गया कि अगर कोई एक्सिडेंट का केस है या फिर मेडिकल इमरजेंसी का केस हो या फिर कोई गर्भवती महिला जो बच्चा को जन्म देने की स्थिति में है तो उसका सबसे पहले इलाज किया जाए।

एडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि दिल्ली हाई कोर्ट में मार्च 2011 में केंद्र सरकार ने हलफनामा देकर कहा था कि केंद्र सरकार ने गाइडलाइंस तैयार की है जिसके तहत घायलों को इलाज से मना नहीं किया जा सकता। केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट को बताया था कि किसी भी घायल को इमरजेंसी में भर्ती से मना नहीं किया जा सकता।

सड़क पर घायलों की मदद करने वालों को भी है प्रोटेक्शन
सुप्रीम कोर्ट ने 30 मार्च 2016 को केंद्र सरकार की उस गाइडलाइंस को एप्रूव्ड कर दिया था जिसके तहत मददगार राहगीर को प्रोटेक्ट करने की बात है। कोई भी गुड सेमेरिटन किसी घायल को जब अस्पताल पहुंचाता है तो उसे वहां से तुरंत जाने की इजाजत होगी और उससे कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा। गुड सेमेरिटन कोई भी अपराधिक या सिविल केस के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। घायलों को मदद करने वाले को अपनी व्यक्तिगत सूचना देना अनिवार्य नहीं बल्कि ऑप्शनल होगा।

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