कश्मीर: अलगाववादी चित्त और वित्त | KASHMIR

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कश्मीर में अलगाववादियों पर नियत्रण की कोशिश का पहला बड़ा कदम  भारत सरकार बमुश्किल उठा पाई है। क्योंकि ,फारुख अब्दुल्ला हों, या उमर अब्दुल्ल्ला  या उस राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती। सबके चित्त ऐसे नही तो वैसे जो भी सोचते है, उससे अलगाववादी ताकतों के ही हाथ मजबूत होते हैं। भारत सरकार ने अब अलगाववादियों के वित्त पर प्रहार किया है।

एनआइए ने दावा है कि उसने विभिन्न ठिकानों से कुल 1.15 करोड़ की नगदी बरामद की। कई ठिकानों पर हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के लेटरहेड भी बरामद हुए हैं। ये छापे हुर्रियत के दोनों धड़ों के लिए बड़ा झटका हैं। हुर्रियत के दोनों धड़ों के बीच चाहे जो मतभेद रहते हों, पर एक समानता है, वह है सीमापार से मदद पाने की, जैसा कि एनआइए के छापे इशारा करते हैं। घाटी में हुर्रियत के मददगार कुछ व्यापारियों के यहां पड़े छापों और उनसे हुई पूछताछ से यह भी पता चलता है कि हवाला के जरिए पैसा आता था। एनसीआर में पड़े छापों ने भी इसी सच को उजागर किया है। यों यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि दुनिया भर में संगठित अपराध और हवाला का रिश्ता जगजाहिर है।

कश्मीर में हिंसा तथा उपद्रव को पहले स्थानीय नेताओं के बोल वचन से और फिर  पाकिस्तान की तरफ से शह मिलती है यह बात भी किसी से छिपी नहीं रही है। पर पाकिस्तान इसे दुनिया के सामने राजनीतिक या नैतिक समर्थन की तरह पेश करता आया है। एनआइए की ताजा जांच का महत्त्व यह है कि कश्मीर घाटी के असंतोष को स्वत:स्फूर्त बताने के पाकिस्तान केप्रचार की काट करने में भारत को सहूलियत होगी। भारत यह कह सकेगा कि सारे बवाल के पीछे पाकिस्तान से आ रहा पैसा है। लेकिन खुलासा काफी नहीं है।

सरकार को सोचना होगा कि आतंक को वित्तीय मदद के रास्ते स्थायी रूप से कैसे बंद किए जाएं। नोटबंदी के जो मुख्य उद््देश्य सरकार ने बताए थे उनमें एक यह भी था कि इससे आतंकवाद पर नकेल कसी जा सकेगी। वैसा क्यों नहीं हो सका? नोटबंदी के बाद भी आतंकवाद में कोई कमी नहीं आई। बल्कि पिछले चार-पांच महीनों में आतंकी घटनाओं में और बढ़ोतरी ही दिखी है।

एनआइए के छापों के फलस्वरूप यह उम्मीद तो नहीं की जा सकती कि अपनी साजिश बेनकाब होने के बाद पाकिस्तान बाज आएगा और घाटी में हिंसा भड़काने के लिए वहां से वित्तीय मदद भेजने की कोशिश नहीं होगी। और, यह सब तब रुक सकता है कश्मीर के चित को अपने बयाँ से उद्वेलित करने वाले नेताओं पर नकेल हो। सत्तारूढ़ पी डी पी और नेशनल कांफ्रेंस को चाहिए की वे अलगाववादी राग को स्वर न देकर भारत सरकार की कार्रवाई का समर्थन करें,इससे कश्मीर के मामले में दुनिया के सामने भारत का पक्ष और मजबूत होने की उम्मीद की जा सकती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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