इंश्योरेंस कंपनियों के बजाय एसेट मैनेजमेंट कंपनियां INVESTMENT बेहतर

मुंबई। म्युचुअल फंड्स और इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स में लोगों की बचत का पैसा लंबे समय से जाता रहा है। इससे लोगों को संपत्ति बनाने और फाइनैंशल कवर हासिल करने में मदद मिलती रही है। जल्द ही आप इन कंपनियों के शेयरों में भी निवेश कर सकेंगे क्योंकि इनमें से कई के इनिशल पब्लिक ऑफर आने की उम्मीद है। निवेशकों के लिए इस तरह एक नया सेगमेंट खुल रहा है और उन्हें इसकी अच्छी जानकारी होनी चाहिए।

आम लोगों की बचत के पैसे का रुख गोल्ड और प्रॉपर्टी जैसी फिजिकल एसेट्स से फाइनेंशियल एसेट्स की ओर मुड़ने के बीच ये दोनों ही सेक्टर इक्विटी में निवेश का अच्छा मौका मुहैया कराएंगे। ओमनीसाइंस कैपिटल के चीफ विकास गुप्ता ने कहा, ‘फाइनैंशल मार्केट्स की ओर बचत का पैसा आने की रफ्तार आने वाले वर्षों में और बढ़ेगी।’

हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि म्यूचुअल फंड्स को इस पैसे का बड़ा हिस्सा मिल सकता है और इस तरह इंश्योरेंस कंपनियों के बजाय एसेट मैनेजमेंट कंपनियां निवेश के लिहाज से बेहतर साबित हो सकती हैं। रिलायंस निपॉन एएमसी और यूटीआई एएमसी जैसे दो फंड हाउसेज ने इस फाइनैंशल इयर में लिस्टिंग की योजना का ऐलान किया है।

AMC को बढ़त क्यों
भारत में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री अब भी प्राथमिक चरण में ही है और देश में बचत का 4 पर्सेंट से भी कम हिस्सा इसकी ओर जाता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस इंडस्ट्री में आगे बढ़ने की बहुत क्षमता है। म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का एसेट अंडर मैनेजमेंट पिछले दो वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है। 2015 में यह 10.84 लाख करोड़ रुपये था, जो मई 2017 में 19.03 लाख करोड़ रुपये हो गया।

नोटबंदी ने भी फाइनैंशल सेविंग्स की ओर पैसा जाने की रफ्तार बढ़ाई है और पिछले साल अक्टूबर से इस इंडस्ट्री की एसेट्स में उछाल आया है। आनंद राठी फाइनैंशल सर्विसेज के डेप्युटी सीईओ फीरोज अजीज ने कहा कि म्यूचुअल फंड्स में निवेश की रफ्तार आने वाले वर्षों में निवेशकों के बीच जागरूकता बढ़ने के साथ कई गुना बढ़ेगी।

उन्होंने कहा, ‘एएमसी का बिजनस कंपाउंडिंग वाला है। कैपिटल मार्केट इनवेस्टमेंट्स का प्रदर्शन बेहतर होने के साथ उनकी एसेट्स में ग्रोथ आती है। कई बड़ी एएमसी इस ग्रोथ से फायदा उठाने के चरण में पहुंच चुकी हैं।’ गुप्ता का कहना है कि स्थापित खिलाड़ियों के लिहाज से देखें तो म्यूचुअल फंड बिजनस के बारे में ठोस राय बनाना आसान है।

प्रॉफिटेबल फंड हाउसेज ग्रोथ दर्ज करते रहेंगे। म्यूचुअल फंड कंपनी के मामले में एसेट साइज का आकार बढ़ने से उसकी इनकम को अहम सपोर्ट मिलता है, जो फंड मैनेजमेंट फीस के रूप में आती है। अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाली जानीमानी फंड कंपनियां निवेशकों की रकम का ज्यादा हिस्सा आकर्षित करने और अपनी फी इनकम बढ़ाने में सफल रही हैं। म्यूचुअल फंड का पोर्टफोलियो भी तय करता है कि वह कितना प्रॉफिटेबल होगा।

इक्विटी और इक्विटी ओरिएंटेड फंड्स ज्यादा फीस लेते हैं। इनके सब्सक्राइबर्स में मुख्यत: रिटेल इन्वेस्टर्स होते हैं और ये ज्यादा समय तक साथ रहने वाले निवेशक माने जाते हैं। ऐसे में ये फंड लंबे समय तक एसेट्स होल्ड कर पाते हैं। इस इंडस्ट्री के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि निवेशक इन स्कीम्स में अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक टिके रहते हैं।

बीमा की पिक्चर साफ नहीं
म्यूचुअल फंड्स की तरह इंश्योरेंस प्रॉडक्ट्स भी ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच नहीं बना सके हैं। इनमें भी ग्रोथ की अच्छी क्षमता है। लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों का न्यू बिजनस प्रीमियम इस साल मई में 11801 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो पिछली अवधि में 10601 करोड़ रुपये पर था। प्राइवेट कंपनियां शानदार ग्रोथ दर्ज कर रही हैं। पॉलिसी के आकार में भी बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि म्यूचुअल फंड्स से तुलना करें तो बीमा कंपनियों के कामकाज की पिक्चर ज्यादा साफ नहीं है।

गुप्ता ने कहा, ‘इंश्योरेंस में कस्टमर बेस काफी कम पक्का है। यह बात इन कंपनियों से ग्राहकों के बिदककर दूसरी कंपनियों की पॉलिसी ले लेने के अनुपात से पता चलती है।’ बीमा कंपनियों की कमाई का मुख्य आधार प्रीमियम कलेक्शन है। लिहाजा नए या पहले साल के बिजनेस प्रीमियम में ग्रोथ को बीमा कंपनियों की सेहत का सबसे अच्छा संकेतक माना जाता है। किसी बीमा कंपनी की पॉलिसी से ग्राहकों के जुड़े रहने के अनुपात को भी दूसरा अच्छा संकेतक माना जाता है। ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि कई कंपनियों का यह आंकड़ा कमजोर है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि लाइफ और नॉन-लाइफ, दोनों प्लांस के लिए प्राइसिंग का रिस्क बना हुआ है और यह बात बीमा कंपनियों के लिए ठीक नहीं है। कैपिलमाइंड के सीईओ दीपक शेनॉय ने कहा कि भारतीय बीमा कंपनियों का वैल्यूएशन उनकी हैसियत से कहीं ज्यादा है।
Source: shilpkar

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