कमीशनखोर डॉक्टरों का साथ नहीं देगा IMA

भोपाल। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने डॉक्टरों से कहा कि वे कट और कमीशन से दूर रहें। मेडिकल कॉन्फ्रेंस सेमिनार आदि में दवा कंपनियों की मदद न लें। किसी भी डॉक्टर की इस तरह की मिलीभगत सामने आई तो आईएमए ऐसे डॉक्टरों के पक्ष में खड़ा नहीं होगा। अब देखना है कि आईएमए की सलाह डॉक्टरों के व्यवहार में दिखेगी या नहीं। वजह, इसके पहले भी आईएमए ने साल में कई एडवाइजरी जारी की हैं, लेकिन वे महज औपचारिकता ही साबित हुई हैं। बता दें कि एक दिन पहले आईएमए ने कहा है कि डॉक्टर मरीजों की प्राइवेसी के लिए सोशल मीडिया में उनके नाम व बीमारी साझा न करें और शराब तय लिमिट में ही पीएं।

कट और कमीशन नहीं लेने की सलाह के बीच सच्चाई यह है कि कई डॉक्टरों के यहां डायग्नोस्टिक लैब की प्रिंटेड पर्चिया रहती हैं। मरीजों को उन्हीं लैब में जांच कराने की सलाह दी जाती है। सीटी स्कैन में 500 से 800, एमआरआई में 1600 से 2000 सोनोग्राफी में 200 से 300 रुपए तक कमीशन की शिकायतें आ चुकी हैं।

आईएमए की सलाह और सच्चाई
एमसीआई के निर्देश पर आईएमए ने भी डॉक्टरों को ब्रांडेड के साथ दवाओं के जेनरिक नाम लिखने के लिए कहा। नाम कैपिटल लेटर में लिखने की सलाह दी गई। यह एडवाइजरी जारी हुए करीब 4 महीने होने जा रहे हैं, लेकिन इक्का-दुक्का निजी डॉक्टर ही जेनरिक नाम लिख रहे हैं।

मेडिकल कांफ्रेंस में दवा कंपनियों की मदद न लेना
यह एडवाइजरी अप्रैल 2017 में वैक्सीन कंपनियों और शिशु रोग विशेषज्ञों के बीच साठगांठ की रिपोर्ट एक मैग्जीन में आने के बाद जारी की गई थी। इसके बाद भोपाल में फिजीशियन्स ऑफ इंडिया समेत कई कांफ्रेस हुईं। कांफ्रेस हाल के भीतर व बाहर दवा कंपनियों ने अपने स्टाल लगाए। न्यूरोलॉजिकल सोसायटी ने तो दवा कंपनी के प्रनिधियों का सम्मान भी किया था।

प्राइवेसी के लिए मरीजों का नाम लॉबी या नोटिस बोर्ड पर नहीं होगा
करीब छह महीने पहले आईएमए ने सलाह दी थी कि अस्पताल में मरीजों के नाम कॉरीडोर, ओटी के बाहर या प्राइवेट रूम के बाहर नहीं लिखे जाएंगे, पर इसका भी पालन नहीं हो रहा है। ओटी के बाहर मरीज का नाम लेकर उसके परिजनों को बुलाया जाता है। बड़े अस्पतालों में प्राइवेट वार्ड में कहां कौन मरीज भर्ती उसके नाम सहित डिस्प्ले किया जाता है।

यह है हकीकत
मप्र के 15 डॉक्टरों का एक फार्मा कंपनी के सहयोग से विदेश यात्रा का मामला सामने आया था। कंपनी के पैसे पर डॉक्टरों ने सपरिवार विदेश की सैर की थी। स्वास्थ्य अधिकार मंच ने इसका खुलासा किया था और एमसीआई में शिकायत की थी। इसके बाद भी आईएमए की नेशनल, स्टेट या डिस्ट्रिक्ट बॉडी ने डॉक्टरों को चेतावनी तक नहीं दी।

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आईएमए जो सलाह देता है वह डॉक्टरों के लिए आचार संहिता है। उसके अनुसार डॉक्टरों को आदर्श व्यवहार करना चाहिए। लेकिन, कोई उसका पालन नहीं कर रहा है तो हम कुछ नहीं कर सकते।
डॉ. पीएस चंदेल
प्रेसीडेंट, आईएमए मध्यप्रदेश
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चिकित्सा शिक्षा महंगी हो रही है। इसका सीधा असर मरीजों पर पड़ रहा है। निजी अस्पताल डॉक्टरों को ऑन रोल न रखकर कांट्रैक्ट पर रखते हैं। उन्हें सर्जरी और इंवेस्टीगेशन के टॉरगेट दिए जाते हैं। दवा कंपनियों के पैसे से डॉक्टरों की विदेशा यात्रा की बात साबित हो चुकी है। आईएमए के पहले एमसीआई ने डॉक्टरों के लिए आचार संहिता बनाई है, पर उसका पालन कोई नहीं कर रहा।
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