जैसे ही बच्चे शादी लायक होते है तथा विवाह सम्बंध की बातें प्रारम्भ होती है उस समय मंगल ग्रह तथा मांगलिक दोष परिवारों के बीच तनाव तथा कई सम्बन्धों के टूटने का कारण होता है। कई बात इसलिए ख़त्म हो जाती है की आपका लड़का या लड़की मंगली है। पंडित भी इतना बोलकर हाथ ऊँचे कर देते है मां बाप भी मन मसोस कर रह जाते हैं। इन सभी समस्या का उपाय केवल मंगल दोष के विषय मॆ खुद को समझदार बनने से ही है। मंगल ग्रह का ही विवाह से इतना गहरा सम्बन्ध क्यों है अन्य ग्रहों से क्यों नही इसके लिये हमे मंगल ग्रह की प्रक्रति समझना पड़ेगी।
मंगलग्रह का जन्म
मंगल ग्रह के जन्म के सम्बन्ध मॆ दो कथाएँ है पहली कथा वराह अवतार लिये भगवान विष्णु की है पृथ्वी की रक्षा के लिये भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया तथा हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी की रक्षा की तब पृथ्वी देवी की अनुग्रह पर भगवान विष्णु और पृथ्वीदेवी ने एकांत वास किया जिससे मंगल ग्रह का जन्म हुआ।
दूसरी कथा भगवान शिव तथा रक्तबीज के युद्ध का है। जहां जहां रक्तबीज का रक्त गिरता वहा उसे मिले वरदान के कारण नया रक्तबीज पैदा हो जाता। भगवान भोलेनाथ के पसीने से मंगल ग्रह का जन्म हुआ जो रक्तबीज के रक्त को ज़मीन मॆ गिरने से पहले ही पी गय़ा। जिससे रक्तबीज का अंत हुआ बाद मॆ भगवान शिव ने उसे पृथ्वी से दूर हटकर आकाशमंडल मॆ जगह दी।
मंगल ग्रह तथा विवाह
मंगल ग्रह रक्त का कारक होता है प्राणी का जन्म मां के रक्त से ही होता है। जैसे ही मां गर्भ धारण करती है मां के रक्त से जीव का शरीर बनना शुरू हो जाता है। रक्त के बिना प्राणी के जीवन की कल्पना भी बेकार है। मंगल ग्रह रज तथ शुक्र ग्रह वीर्य के सम्बंध से ही जीव का ढाँचा बनकर जीवन शुरू होता है। ये दोनो ग्रह चुम्बक की तरह एक दूसरे को आकर्षित करते हैं। ये दोनो ग्रह माया रूपी स्तम्भ के धन तथा ऋण है जो की एक दूसरे को आवेशित करते हैं। यदि यह आकर्षण संतुलित रहा तो जीवन सुखमय होगा यदि असंतुलन हुआ तो परिवार बिखरने का खतरा रहता है। इसिलिये लड़के व लड़की का मंगल मिलान कराया जाता है।
मंगल शुभ तथा अशुभ भी होता है इसकी पहचान भी होनी चाहिये
गुरु की दृष्टि मॆ यदि मंगल हो तो वह शुभ होता है चंद्र और सूर्य की दृष्टि भी मंगल को शुभ करती है।
बारहवें भाव तथा आठवें भाव का मंगल यदि शत्रु राशि (मिथुन कन्या,वृषभ,तुला) मॆ हो तथा उस पर राहु केतु का प्रभाव या अशुभ शनि की दृष्टि हो तो मंगल अशुभ होता है। लग्न(प्रथम),-चतुर्थ तथा सातवें भाव मॆ स्थित उपरोक्त राशि का मंगल अशुभ होता है।अन्य राशि मॆ मंगल शुभ होता है।
मंगल दोष का परिहार
यदि प्रथम,चतुर्थ,सप्तम भाव मॆ मंगल हो तो जिस दूसरे व्यक्ति के इन्ही भाव मॆ सूर्य, शनि राहु, केतु जैसे ग्रह हो तो मंगल दोष का परिहार हो जाता है।
भातपूजा
उज्जैन मॆ भगवान मंगलनाथ का मंदिर है यहा स्वयं मंगलग्रह ने तपस्या की थी इस स्थान मॆ चावल अर्थात भात के द्वारा भगवान मंगलनाथ महादेव के श्रॄंगार करके उसका विधि अनुसार पूजन किया जाता है इससे मंगलदोष की शांति होती है।
*प.चंद्रशेखरनेमा"हिमांशु"*
9893280184,7000460931