आकाश यातायात: क्या करें महाराजा का | AIR INDIA

राकेश दुबे@प्रतिदिन। एयर इंडिया या किंगफिशर? दोनों में बड़ा घोटाला कौन सा है ? एक बड़ा सवाल है। वित्तीय संदर्भ में देखा जाए तो एयर इंडिया ने कहीं ज्यादा पैसा डुबाया है और किंगफिशर की तुलना में वह ऋणदाताओं की जेब पर कहीं अधिक भारी बोझ डालेगी। एयर इंडिया की तीन साल पुरानी बैलेंस शीट के अनुसार सरकार ने शेयर पूंजी के रूप में वहां 14,435 करोड़ रुपये का निवेश किया। जबकि विमानन कंपनी ने 49,869 करोड़ रुपये की राशि उधार ली। कुल 64214 करोड़ रुपये का फंड एक ऐसे कारोबार में डाला गया जिसका कुल राजस्व उस वक्त 19000 करोड़ रुपये था। तब से आंकड़े बदल गए हैं लेकिन बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है। आधे से अधिक कर्ज कार्यशील पूंजी के खाते में है। लेकिन यह कैसा कारोबार है जिसे उसके सालाना टर्नओवर से अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता है। कंपनी की अचल संपत्ति का मूल्य काफी कम है।

एयर इण्डिया को बचाने के लिए सरकार ने बैंकों को यह सुझाव दिया गया कि वे अपने कुछ ऋण को इक्विटी में बदल लें। चूंकि वे किंगफिशर के साथ एक विवादास्पद सौदे में अपने हाथ पहले ही जला चुके थे इसलिए उन्होंने समझदारीपूर्वक इस विचार को खारिज कर दिया। उसके बाद सरकार ने समय-समय पर दिए जाने वाले राहत पैकेज की शुरुआत की और 30,000 करोड़ रुपये दिए। देखा जय तो अन्य एयर लाइंस का संयुक्त कर्ज एयर इंडिया की तुलना में बमुश्किल आधा है। बचाव की तीन साल की कोशिशों के बाद इस प्रश्न का जवाब अब साफ है और अब फंसे हुए पैसे की खातिर और निवेश करना बेतुका नजर आ रहा है। 

निजीकरण अचानक स्वीकार्य नजर आने लगा है। परंतु एक दिवालिया और परिचालन के मामले में अव्यावहारिक हो चुकी विमानन कंपनी को कौन खरीदेगा? ऐसे में नागरिक उड्डयन मंत्री का यह मानना उचित ही है कि आखिर में हो सकता है कोई खरीदार न मिले। हो सकता है निजीकरण के लिए काफी देर हो चुकी हो। अगर आप एयर इंडिया को बतौर सरकारी विमानन कंपनी नहीं चलाना चाहते और उसका निजीकरण भी नहीं करना चाहते तो इकलौता विकल्प है इसे बंद करना। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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