नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2014 के बाद से लगातार लगभग हर चुनाव में कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी और भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी चैहरा होते हैं। हर चुनाव दोनों के बीच की लड़ाई बनता है और अंतत: राहुल गांधी हार जाते हैं। फिर चाहे वो दिल्ली के नगरपालिकाओं के चुनाव हों या फिर यूपी के। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदल दी है। आने वाले 6 राज्यों के चुनाव में राहुल गांधी पर्दे के पीछे से कंट्रोल करेंगे जबकि फ्रंट में कांग्रेस के क्षेत्रीय नेता मुकाबला करेंगे। ऐसे में मोदी के लिए यह मुश्किल होगा कि वो किसी राज्य के क्षेत्रीय नेता पर पर्याप्त हमला कर पाएं। अत: लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं के बीच केंद्रित हो जाएगी। एआईसीसी के रणनीतिकारों को भरोसा है कि यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस फिर से ताकतवर हो जाएगी।
दरअसल, कांग्रेस पार्टी वर्ष 2004 की सियासी रणनीति अपनाने जा रही है जिसपर चलकर पार्टी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को पराजित कर दोबारा सत्ता हासिल की थी। कांग्रेस पार्टी के बड़े रणनीतिकार बताते हैं कि छोटे-छोटे चुनाव को भाजपा मोदी बनाम राहुल की लड़ाई बना देती है। और चुनाव जीतने के बाद ब्रांड राहुल पर हमला करती है। साथ ही राज्य भाजपा का नेतृत्व और राज्यों के मुद्दे पीछे छूट जाते हैं और भाजपा एंटी इनकंबेंसी से भी बच जाती है, जैसा दिल्ली एमसीडी और यूपी के चुनावों में देखने को मिला।
ऐसे में पार्टी अब उसी रणनीति को दोहराना चाहती है, जिसके तहत सोनिया ने 2004 में वाजपेयी सरकार को बाहर करके कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। यानी अब राहुल उसी रास्ते पर चलकर ब्रांड मोदी से टकराना चाहते हैं, जैसे सोनिया ब्रांड अटल से टकरायीं थीं। तब भी वाजपेयी की लोकप्रियता चरम पर थी। बतौर वक़्ता वे सभी से मीलों आगे थे। इंडिया साइनिंग और मीडिया का माहौल भाजपामय था। कांग्रेस कहीं से सत्ता में आती नहीं दिख रही थी। वहीं सोनिया गांधी भाषण तो दूर ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाती थीं। कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे थे।
पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि आज भी कमोबेश वैसे ही हालात हैं। मोदी ब्रांड भाजपा से भी बड़ा हो चला है और राहुल की छवि उसके आगे टिक नहीं पा रही। पार्टी की नई रणनीति के मुताबिक यूपी की तरह राहुल छोटे या राज्यों के चुनाव में खुद फ्रंट पर आकर चेहरा नहीं बनेंगे। अब केंद्र सरकार की नाकामियों के साथ ही राज्य के मुद्दों को प्रमुखता से उठाकर सियासी लड़ाई होगी। इसमें कांग्रेस राज्य के नेताओं के ज़रिए भाजपा के राज्य के नेतृत्व से सीधे टकराएगी। पंजाब की तर्ज पर राहुल सीमित भूमिका में प्रचार अभियान में जुटेंगे।
इस बीच राहुल संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत करेंगे। राज्यों में सफलता मिलने से उनकी छवि भी सुधरेगी। साथ ही 2019 आते-आते केंद्र के खिलाफ बढ़ने वाली एंटी इनकंबेंसी का फायदा भी राहुल की छवि को बेहतर करेगा।
रणनीति यह भी है कि राहुल इस बीच राज्यवार गठबंधन बनाने की दिशा में काम करेंगे। इसके अलावा भ्रष्टाचार से लड़ाई को लेकर पार्टी की बेहतर छवि बनाने के लिए क़दम उठाते दिखेंगे। राहुल की एक और बड़ी कोशिश पार्टी की और खुद की मुस्लिम तुष्टिकरण की छवि की तोड़ने की रहेगी। वे सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ क़दम बढ़ाते दिखेंगे। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस हिमाचल, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के आने वाले विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है।