यहां छिपा है सिंधिया का अकूत स्वर्ण भंडार, 35 क्विंटल सोना मिल चुका, क्या बाकी का मिल पाएगा

उपदेश अवस्थी। ग्वालियर का किला कई रहस्यों से भरा हुआ है। इन्ही में से एक है सिंधिया राजवंश का वह खजाना जो आपातकाल के लिए पूर्वजों ने किले के कई तहखानों में छुपाकर रखा है। इस खजाने को ‘गंगाजली’ नाम दिया गया है। खजाने तक पहुंचने का मार्ग एक 'बीजक' में सुरक्षित रखा है परंतु इसकी जानकारी 1886 में महाराज जयाजीराव सिंधिया की मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गई। ऐसा नहीं है कि यह अकूत स्वर्ण भंडार तब से अब तक केवल एक किवदंति रहा है। श्रीमंत माधौराव सिंधिया को सबसे पहले इस खजाने का एक छोटा हिस्सा प्राप्त हुआ। फिर अंग्रेज अधिकारी कर्नल बैनरमेन ने माधौ महाराज की अनुमति से खजाने की तलाश में अभियान जलाया। कर्नल बैनरमेन एक और तहखाने को तलाशपाने में सफल हुआ। यहां से करीब 35000 किलो स्वर्ण भंडार मिला जिसकी आज की तारीख में कीमत 1000 करोड़ रुपए होती है। लेकिन वो अन्य तहखानों तक नहीं पहुंच पाया। ‘गंगाजली’ के ये तहखाने अभी भी रहस्य बने हुए हैं। बताया जाता है कि अभी 5 तहखाने शेष हैं। हर नए तहखाने में पिछले तहखाने से दोगुना स्वर्ण भंडार है। कभी कभी चर्चा होती है कि स्व. माधवराव सिंधिया ने भी इनकी तलाश का प्रयास किया था परंतु राजमाता के कारण उन्हे कदम पीछे खींचने पड़े। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया इस परिवार के मुखिया हैं। 

इस खजाने को सिंधिया महाराजाओं ने किले के कई तहखानों में सुरक्षित रखवा दिया था। इन तहखानों को ‘गंगाजली’ नाम दिया गया था। यहां तक पहुंचने के रास्तों का रहस्य कोड वर्ड के तौर पर ‘बीजक’ में महफूज रखा गया। जयाजीराव ने 1857 के संघर्ष के दौरान बड़ी मुश्किल से पूर्वजों के इस खजाने को विद्रोहियों और अंग्रेज फौज से बचा कर रखा। ‘बीजक’ का रहस्य सिर्फ महाराजा जानते थे। 1857 के गदर के दौरान महाराज जयाजीराव सिंधिया को यह चिंता हुई कि किले का सैनिक छावनी के रूप में उपयोग कर रहे अंग्रेज कहीं खज़ाने को अपने कब्जे में न ले लें। साल 1886 में किला जब दोबारा सिंधिया प्रशासन को दिया गया, तब तक जयाजीराव बीमार रहने लगे। वे अपने वारिस युवराज माधौराव को इसका रहस्य बता पाते, इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।

गुप्त छुपे हुए तहखाने का दरवाज़ा खुल गया
परन्तु माधौराव के भाग्य का सितारा अभी चमकने वाला था। एक दिन महाराज माधौराव अपने किले के एक गलियारे से गुज़र रहे थे। इस रास्ते की तरफ कोई आता जाता नहीं था। उस रास्ते से गुज़रते हुए अचानक माधौराव का पैर फिसला, संभलने के लिए उन्होंने पास के एक खंभे को पकड़ा। आश्चर्यजनक रूप से वह खम्भा एक तरफ झुक गया और एक गुप्त छुपे हुए तहखाने का दरवाज़ा खुल गया। माधौ महाराज ने अपने सिपाहियों को बुलाया और तहखाने की छानबीन की। उस तहखाने से माधौ महाराज को 2 करोड़ चांदी के सिक्कों के साथ अन्य बहुमूल्य रत्न मिले। इस खजाने के मिलने से माधवराव की आर्थिक स्थिति में बहुत वृद्धि हुई।

माधौ महाराज ने राह बताने वाले ज्योतिषी को मार डाला
खजाने का एक तहखाना तो मिल गया था, लेकिन गंगाजली के बाकी खजानों की खोज तो अभी बाकी ही थी। लिहाजा, अंग्रेजों की गतिविधियां खत्म होने के बाद एक बार फिर माधौ महाराज ने खजाने की खोज शुरू की। इसमें उनकी मदद के लिए उनके पिता के समय का एक बुजुर्ग ज्योतिषी आगे आया। उसने महाराज के सामने शर्त रखी कि उन्हें बगैर हथियार अकेले उसके साथ चलना होगा। महाराज राजी हो गए। ज्योतिषी माधौ महाराज को अंधेरी भूलभुलैयानुमा सीढ़ियों से नीचे ले जाता हुआ ‘गंगाजली’ के एक तहखाने तक ले भी गया था। इसी दौरान महाराजा को अपने पीछे कोई छाया नजर आई, तो उन्होंने बचाव में अपने राजदंड से अंधेरे में ही प्रहार किया और दौड़ कर ऊपर आ गए। ऊपर खड़े सैनिकों को साथ ले कर जब वे वापस आए, तब उन्हें पता चला कि गलती से उन्होंने ज्योतिषी को मार दिया है। लिहाजा, वह एक बार फिर वो बाकी खज़ाने से वंचित रह गए।

इन्हें मिला था करोड़ों का खजाना
माधौ महाराज जब बालिग हुए, तब तक खानदान में ‘गंगाजली’ खजाने को लेकर ऊहापोह और बेचैनी रही। इसी दौरान अंग्रेज कर्नल बैनरमेन ने गंगाजली की खोज में उनकी सहायता का प्रस्ताव दिया। सिंधिया खानदान के प्रतिनिधियों की निगरानी में कर्नल ने ‘गंगाजली’ की बहुत तलाश की, लेकिन पूरा खजाना नहीं मिल सका। कहा जाता है कि पूरा खजाना तो नहीं मिला, लेकिन जो भी मिला, उसकी कीमत उन दिनों करीब 62 करोड़ रुपए आंकी गई थी। कर्नल बैनरमेन ने इस तहखाने को देख कर अपनी डायरी में इसे ‘अलादीन का खजाना’ लिखा था।

अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए चुनौती
कहा जाता है कि गंगाजली के कई तहखाने आज भी महफूज हैं और सिंधिया घराने की पहुंच से बाहर हैं। इन घटनाओं का उल्लेख वैसे तो किसी इतिहास की किताब में नहीं मिलता, लेकिन कई संस्मरणों में इसके बारे में संकेत मिलते हैं। शहर के इतिहास लेखक डॉ. राम विद्रोही के मुताबिक, राजमाता विजयाराजे सिंधिया के संस्मरणों में कुछ संकेत मिले हैं। इसके अलावा, सिंधिया रियासत के तत्कालीन गजट विवरणों में कर्नल बैनरमेन के अभियानों का उल्लेख मिलता है। हालांकि, कहीं भी इतनी दौलत मिलने को स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया गया। कहा जाता है कि सिंधिया राजवंश के वर्तमान मुखिया श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया इस खजाने तक पहुंचने के लिए लगातार उपाय कर रहे हैं परंतु अभी तक उन्हे वो सही व्यक्ति नहीं मिल पाया है जो ‘गंगाजली’ तक का मार्गदर्शन कर सके। 

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !