शबे बारात यानी मुक्ति की रात | RELISIOUS

शोएब सिद्दीकी। रमजान उल मुबारक के 15 दिन पूर्व मनाया जाने वाला विशेष इबादत का त्योहार है शबे बारात। शब का अर्थ है रात और बारात या बराअत का अर्थ है मुक्ति या निजात। अल्लाह रब्बुल इज्ज़त की बारगाह में शबे बारात की रात हर इंसान की ऑडिट रिपोर्ट तैयार होती है। जिसमें उनके भले-बुरे कामों का लेखा-जोखा होता है। आज की रात यह तय होता है कि इस साल किस-किसका अल्लाह के घर से बुलावा आयेगा और किस-किसको ज़िन्दगी मिलनी है। यानि मौत के ख़ौफ के साथ लोग अल्लाह की बारगाह में अपनी निजात की अर्ज़ी लगाते हैं। 

इस दिन मस्जिदों में विशेष इबादतें होती हैं तथा रात में शहर की प्रमुख मस्जिदों में शबे बारात की फजीलत के बारे में उलेमा ए दीन की  तकरीरें तथा खुसुसी दुआएँ भी होती हैं। इस मौके पर मुसलमान अपने रिश्तेदारों की कब्रों पर फातेहा भी पढ़ने जाते हैं। 

शबे बारात की रात इबादत की रात है। लोग अल्लाह की बारगाह में अपने गुनाहों की तौबा करते हैं और अल्लाह से अपनी जानी-अनजानी ग़लतियों की म'आफी माँगते हैं। पन्द्र्ह शाबान को "शबे-बारात" मान कर जगह-जगह, चौराहों, गली-कूचों में मजलिसें जमातें और करके पन्द्र्ह शाबान की अहमियत और फ़ज़ीलत का बयान होता है।

मस्जिदों, खानकाहों वगैरा में जमा होकर या आमतौर से सलातुल उमरी सौ रकआत (उमरी सौ रकआत), नमाज़ सलाते रगाइब (रगाइब की नमाज़), सलातुल अलफ़िआ (हज़ारी नमाज़) की नमाज़ की जाती है। यह भी होता है कि पन्द्रह शअबान की रात को "ईदुल अम्वात" (मुर्दों की ईद) समझ कर मुर्दों की रुहों का ज़मीन पर आने का इन्तिज़ार करते हैं। कई लोग नियाज़ फ़ातिहा, कुरआन ख्वानी (कुरआन पढना) करते है।
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