राहुल गांधी के कारण अटकी हुई है कमलनाथ की सीएम कैंडिडेटशिप | KAMAL NATH

भोपाल। खबर आ रही है कि कमलनाथ ने दिल्ली में सबकुछ मैनेज कर लिया है। सोनिया गांधी से लेकर दिग्विजय सिंह तक सभी नेता कमलनाथ को सीएम कैंडिडेट बनाने के लिए तैयार हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी कमलनाथ को फायदा और ज्योतिरादित्य सिंधिया को नुक्सान दे रही है लेकिन राहुल गांधी ने अभी तक इस मामले में अपने कार्ड ओपन नहीं किए है और यही कारण है कि कमलनाथ की घोषणा नहीं हो पा रही है। 

कमलनाथ मध्यप्रदेश की कमान हाथ में लेने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने भोपाल से लेकर दिल्ली तक सबको साध लिया है। सूत्रों का दावा है कि एमपी में दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह कमलनाथ के साथ हैं। दिल्ली में सोनिया गांधी को भी कोई आपत्ति नहीं है। वो बस कांग्रेस की सरकार बनते देखना चाहतीं हैं। उनके सामने कमलनाथ का प्रजेंटेशन भी हो चुका है कि कैसे वो बड़ी आसानी से मध्यप्रदेश के सभी गुटों को अपने साथ ला सकते हैं। बार बार यह दोहराया जा रहा है कि यदि सभी गुट एक हो गए तो कांग्रेस की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता। 

हाल ही में लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा की लोक लेखा समिति का चेयरमैन बना दिया गया है, जिसको कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा प्राप्त है। इससे पहले लोकसभा में 55 सांसद के आंकड़ों से दूर कांग्रेस के लोकसभा में नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्ष के नेता का दर्जा नहीं मिल सका था। ऐसे में पार्टी का मानना है कि खड़गे का एक तरीके से प्रमोशन हो चुका है। अब लोकसभा में कांग्रेस के नेता के तौर पर नई नियुक्ति की जानी है। हालांकि इस पद पर आने वाले को कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा पहले की ही तर्ज पर नहीं होगा। इस बारे में गहन विचार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के नाम उभरकर सामने आए हैं लेकिन मामला मध्य प्रदेश में पार्टी की कमान पर भी उलझ गया है। दोनों की प्राथमिकता मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री की रही है। ऐसे में कई दौर की बैठकों के बाद भी फैसला नहीं हो पाया है। 

कमलनाथ के समर्थन में दी गईं दलीलें
1. उम्र के हिसाब से कमलनाथ के पास तकरीबन आखिरी मौका है, साथ ही तमाम कोशिश के बावजूद अब से पहले उनको कभी बतौर सीएम चेहरा नहीं बनाया गया।
2. कमलनाथ एमपी में दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह और सुरेश पचौरी सरीखे नेता को साध सकते हैं, ये तमाम नेता सिंधिया से वरिष्ठ भी हैं।
3. पिछले चुनाव में आखिरी वक्त के लिए ही सही लेकिन सिंधिया को बतौर सीएम चेहरा पेश करके ही चुनाव लड़ा था, तब उनको कैम्पेन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था।
4. लोकसभा में राहुल के साथ हमउम्र सिंधिया फिलहाल ज़्यादा बेहतर हो सकते हैं। इस तरह से मोदी सरकार को ज्यादा मजबूती से घेरा जा सकता है और कांग्रेस को पूरे देश में मजबूत किया जा सकता है। 

राहुल नहीं बनना चाहते विपक्ष के नेता 
राहुल लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं बनना चाहते क्योंकि उनको पार्टी का अध्यक्ष बनना है और राहुल नहीं चाहते कि एक नेता एक पद का सिद्धांत खुद राहुल तोड़ें। इतिहास गवाह है कि सोनिया जब राजनीति में आईं थीं तो उन्होंने शरद पवार को लोकसभा में कांग्रेस का नेता बनाया था। हालांकि, तब लोकसभा में कांग्रेस के नेता को विपक्ष के नेता तौर पर कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा प्राप्त था। अत: तय है कि मप्र के दोनों दिग्गजों में से कोई एक दिल्ली में काबिज होगा और दूसरा मप्र में। 

राहुल गांधी बने कमलनाथ की राह में रोड़ा
दिल्ली में होने वाले फैसलों में जितने भी नेता अपना वोट दे सकते हैं उन सभी के साथ कमलनाथ की सौहार्दपूर्ण बातचीत हो चुकी है। एआईसीसीसी के ज्यादातर पदाधिकारी कमलनाथ के ऐलान का विरोध नहीं करेंगे परंतु राहुल गांधी ने अब तक अपना कार्ड ओपन नहीं किया है। बस यही कारण है कि अब तक कमलनाथ के नाम का ऐलान नहीं हो पाया है। कमलनाथ के समर्थकों का कहना है कि 15 मई तक इस मामले में फैसला हो जाएगा। 

दवाब बनाने के लिए दी थी इस्तीफे की धमकी
पिछले दिनों खबर आई थी कि कमलनाथ के नजदीकी की ओर से हाईकमान तक यह संदेश भी भेजा गया था कि यदि उन्हे सीएम कैंडिडेट नहीं बनाया गया तो वो कांग्रेस छोड़कर जा सकते हैं। इसके साथ यह भी बताया गया था कि यदि सिंधिया को सीएम कैंडिडेट बनाया जाता है तो कांग्रेस की गुटबाजी उभरकर और सुर्ख हो जाएगी। ऐसे में चुनाव जीतना असंभव होगा। पंजाब में कैप्टन की ओर से भी ऐसा ही दवाब आया था। अब देखना यह है कि मप्र के मामले में यह पत्ता कितना काम करता है। 

एक तरफ सिंधिया कमजोर, दूसरी तरफ ताकतवर
कमलनाथ के लिए उनके साथी सहयोगी जिस तरह की ब्रांडिंग कर रहे हैं उसके हिसाब से ज्योतिरादित्य सिंधिया मप्र के लिए कमजोर लेकिन दिल्ली के लिए दमदार नेता हैं। दलील दी जा रही है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया मप्र में काबिज क्षेत्रीय क्षत्रपों में सबसे छोटे हैं। उनकी कम उम्र के कारण दूसरे गुट उनको स्वीकार नहीं करेंगे। साथ ही यह भी जोड़ा जा रहा है कि लोकसभा में राहुल गांधी के साथ वो पूरी तरह से फिट रहेंगे। उनके दिल्ली में होने से पूरे देश में कांग्रेस मजबूत होगी। 

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