बाल विवाह के कारण दूल्हे को दोषी मानकर नौकरी से नहीं निकाला जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

भोपाल। सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि बाल विवाह के कारण वर या वधु को दोषी मानकर उन्हे नौकरी से वंचित नहीं किया जा सकता। इसी के साथ एमपी पीएससी को राज्य सेवा परीक्षा 2003 की चयन प्रक्रिया से बाहर हुए एक उम्मीदवार का रिजल्ट जारी होने के दस साल बाद स्पेशल इंटरव्यू कराना पड़ा। तीन दिन पहले इसका रिजल्ट जारी करते हुए पीएससी ने मेरिट लिस्ट में उम्मीदवार को 71-ए स्थान देते हुए नायब तहसीलदार पद के लिए चयनित घोषित किया। इस उम्मीदवार को बाल विवाह का दोषी मान पीएससी ने अयोग्य घोषित कर दिया था।

जल्दी शादी इसलिए बाहर
रावतपुरा पिछौर के रहने वाले अजय कुमार परसेंडिया 2003 पीएससी के प्री और मेंस में चयनित हो गए थे। इंटरव्यू के पहले उम्मीदवारों के दस्तावेजों के सत्यापन के साथ उनसे उनकी पूरी जानकारी मांगी गई थी। अजय कुमार ने अपने 21 साल की उम्र से पहले शादी की जानकारी पीएससी को उपलब्ध कराई थी। बाल विवाह में शामिल होने के कारण पीएससी ने नियमों को आधार बनाकर अजय कुमार को अयोग्य घोषित कर इंटरव्यू के अंतिम दौर में शामिल नहीं किया था।

नाबालिग जिम्मेदार नहीं है 
चयन प्रक्रिया से बाहर किए जाने के बाद अजय कुमार ने पीएससी के खिलाफ हाई कोर्ट में केस लगा दिया। 2007 में पीएससी ने परीक्षा का रिजल्ट घोषित कर चयन सूची जारी कर दी। इस बीच 10 साल तक चली कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में फैसला दिया कि बाल विवाह के लिए नाबालिग दूल्हे को दोषी नहीं माना जा सकता। वह खुद इसका पीड़ित माना जाएगा। फैसले के बाद उम्मीदवार ने पीएससी से अपने लिए इंटरव्यू कराने की मांग की। पूरी नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर दी गई। इसके बाद पीएससी ने अजय कुमार को योग्य मानते हुए अकेले उम्मीदवार का इंटरव्यू कराया।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि बाल विवाह के लिए नाबालिग को दोषी नहीं माना जा सकता। इस आधार पर पीएससी ने स्पेशल इंटरव्यू करवाकर रिजल्ट जारी कर दिया।
रेणु पंत, सचिव, पीएससी

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