नई दिल्ली। नोटबंदी के बाद केंद्र सरकार को उम्मीद थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था कैशलेस इकोनॉमी की दिशा में आगे बढ़ेगी। मगर, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने जो आंकडे़ पेश किए हैं, उनसे तस्वीर उल्टी ही दिख रही है। यानी पिछले साल मार्च में एटीएम से जितना कैश निकाला गया था, उससे ज्यादा कैश इस साल मार्च में निकाला गया है। इस साल मार्च में एटीएम से 2,259 अरब रुपए कैश निकाले गए, जो पिछले साल इसी महीने की तुलना में 0.6 फीसद अधिक थी. हालांकि, मार्च 2015 की तुलना में मार्च 2016 में यह दर काफी कम रही, लेकिन इसके बावजूद 11.4% की वृद्धि हुई है।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर के पुराने 500 रुपए और 1,000 रुपए के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी. इसके चार महीनों बाद तक कई एटीएम में नकदी नहीं रही थी. इसके अलावा, 13 मार्च को आरबीआई ने नकद निकासी की सभी सीमाओं को हटा लिया।
पहल इंडिया फाउंडेशन की इकोनॉमिस्ट निरुपमा सौंदाराजन ने बताया कि मार्च के रुझान दिखाते हैं कि नकदी की कमी के बावजूद लोग नकदी का इस्तेमाल करने की अपनी पुरानी आदत में लौट रहे हैं. दिसंबर 2016 में जब कई प्रतिबंध लगे थे, तो महज 849 अरब रुपए ही वापस लिए गए थे।
एपीए सर्विसेस के मैनेजिंग पार्टनर अश्विन पारेख ने बताया कि देश पूरी तरह से डिजिटलाइजेशन की ओर बढ़ने के लिए तैयार नहीं था. अब आंकड़ों से पता चलता है कि लोगों को आपातकालीन परिस्थितियों के लिए नकदी को हाथ में रखने की पुरानी आदत की ओर लौट रहे हैं।
डिजिटलाइजेशन के परिणामस्वरूप, सिस्टम से 15.4 ट्रिलियन रुपए निकाले गए थे. हालांकि, सेंट्रल बैंक ने अभी तक यह नहीं बताया है कि बैंकिंग प्रणाली में कितनी मुद्रा वापस आ गई है. देश के दो लाख 20 हजार एटीएम में से कई अभी तक अपने सामान्य स्तर पर वापस नहीं लौटे हैं. देश में अभी भी नकदी की कमी है और नकदी की मांग नोटबंदी के पहले के स्तर पर हो गई है।