वायरस हमले का जवाब, सामाजिक नेटवर्क का विकास

राकेश दुबे@प्रतिदिन। चुपके से कोई वायरस आपके कम्प्यूटर में घुस जाये तो इस तरह के मामले की रिपोर्ट कोई थाना नही लिखेगा। फिर, आपके पास क्या विकल्प हैं? हैकर कह रहा है कि आपका कंप्यूटर अब मेरे कब्जे में है, 30 हजार रुपये की रकम खर्च कीजिए, तो मैं इसे मुक्त कर दूंगा। और आपको लगता है कि इतने में तो एक अच्छा-खासा नया कंप्यूटर आ जाएगा।सच तो यह है कि आप कुछ नहीं कर सकते। आपको कहीं से राहत नहीं मिलने वाली, बस नसीहतें मिलेंगी। 

कहा जाएगा कि आपको अपना कंप्यूटर अपडेट रखना चाहिए था, आप पुराना वर्जन भला क्यों इस्तेमाल कर रहे थे, आपका एंटी-वायरस बहुत अच्छा नहीं था, वगैरह। यह सब कुछ ऐसा ही है, जैसे आपके घर में चोरी हो और पुलिस आकर कहे कि आपने घर में तीन लीवर वाला ताला क्यों लगाया था? उसे तो चोर आसानी से तोड़ लेते हैं। आपको चार लीवर वाला ताला लगाना चाहिए था। अब आपके पास इसका कोई विकल्प नहीं बचेगा कि आप इस चोरी को अपनी किस्मत मान लें और चार लीवर वाला ताला खरीदने के लिए निकल पड़ें।

कंप्यूटर के मामले में आपके पास एक विकल्प यह है कि आप इसे फॉर्मेट करवा लें। इसकी हार्ड डिस्क सफाचट करवा कर इसमें सारे सॉफ्टवेयर नए सिरे से डलवा लें। लेकिन इस चक्कर में इसमें रखी आपकी बहुत सारी मेहनत, चली जाएगी और इन सबको खोने का आपको दुख तो होगा, लेकिन इन्हें बचाए रखने के लिए कुछ  हजार रुपये की कीमत बहुत ज्यादा है।परन्तु ,यह भी तब कर सकेंगे , जब कंप्यूटर आपका निजी हो। समस्या अगर किसी बड़ी कंपनी या संगठन के कंप्यूटरों और नेटवर्क में आ रही हो, तो यह इतना आसान नहीं होगा। उनके कंप्यूटरों में रखा डाटा अक्सर बेशकीमती होता है।

शुक्रवार को हुए हमले के बाद कई कंपनियों और संगठनों को भी कोई मदद नहीं मिल रही। उन्हें भी कुछ मिल रही है, तो बस नसीहतें। ब्रिटेन की स्वास्थ्य योजना के लिए हर जगह बस यही पूछा जा रहा है कि उसने अपनी विंडोज को अपडेट क्यों नहीं किया? वह भी तब, जब खुद माइक्रोसॉफ्ट सुरक्षा की जिम्मेदारी से हाथ झाड़ चुका है। उसकी एंटी-वायरस व्यवस्थाओं पर भी सवाल पूछे जा रहे हैं। कुछ लोगों की आपत्ति यह है कि ये सारी नसीहतें बस कुछ कंपनियों का व्यापार बढ़ाने वाली हैं, खासकर उन कंपनियों का, जो साइबर सुरक्षा के काम में लगी हैं। साइबर बीमा जैसी चीजों की भी बात होने लगी है। हालांकि इसमें आपत्तिजनक कुछ भी नहीं है। अपराध हमेशा से सुरक्षा के कारोबार को पनपने का अवसर देता रहा है।

सच यही है कि हमने कंप्यूटर, इंटरनेट और स्मार्टफोन वगैरह के जरिये पूरी दुनिया को तो जोड़ दिया है, लेकिन दुनिया की व्यवस्थाएं आपस में नहीं जुड़ीं। हमारे कंप्यूटरों ने जितना विकास किया है, दुनिया के सामाजिक नेटवर्क ने उतना विकास नहीं किया।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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