अद्भुत महाशिवलिंग: 13 किलोचांदी मिश्रित 11 क्विंटल वजन, 107 पिंडियां

सागर। एक अद्भुत महाशिवलिंग तैयार कराया गया है। 13 किलो चांदी सहित अष्टधातु से बने 11 क्विंटल वजनी शिवलिंग के चारों तरफ 107 पिंडिंया इसे भव्यता प्रदान कर रही हैं। यह हूबहू राहतगढ़ के बनेनी घाट पर पत्थर से निर्मित 108 शिवलिंग जैसा दिखता है। दावा किया जा रहा है कि अष्टधातु से बना यह शिवलिंग प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में अद्वितीय है। इसे शहर के प्रसिद्ध मंशापूरन बालाजी मंदिर में स्थापित कराया जाएगा।

बालाजी मन्दिर का इतिहास
सागर शहर से लगा हुआ “धर्मश्री” नामक स्थान है, जो कि मुख्य शहर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर है । इस स्थान से लगी हुई एक पावन पवित्र मनोहारी सुन्दर पहाड़ी पर श्री मंशापूरन बालाजी का दरबार है । इस स्थान पर दरबार निर्माण की प्रकाश चन्द्र साहू (रामदास) को 10 मई 1999 को श्री बालाजी ने स्वयं उनके शरीर पर सवारी रूप में आकर इसी स्थान पर आज्ञा दी थी कि “इस स्थान पर तुम्हें मेरे दरबार का निर्माण कराना है । यहाँ मैं अपनी सम्पूर्ण कलाओं एवं शक्तियों के साथ में विराजमान होऊँगा एवं समस्त मानव जाति के दुख – दर्दों, कष्टों, ऊपरी बाधाओं(भूत प्रेत इत्यादि) एवं समस्याओं का निराकरण कर उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करूँगा। इसी के अनुरूप मैं यहाँ “श्री मंशापूरन बालाजी” के नाम से दरबार लगाऊँगा । यह दरबार मेरे मेंहदीपुर बालाजी (राजस्थान) के दरबार जैसा ही दिव्य, भव्य, चमत्कारी एवं विशाल होगा। 

प्रारम्भ में मन्दिर निर्माण हेतु 5 एकड़ भूमि प्रकाश चन्द्र साहू के परिवार वालों द्वारा दान में दी गई। बाद में परिवार एवं भक्तों के सहयोग से 14 एकड़ भूमि की व्यवस्था की गई। श्री बालाजी की प्रेरणानुसार प्रकाश चन्द्र साहू के पिता श्री हुकुमचन्द साहू ने मंदिरों के निर्माण हेतु एक सार्वजनिक ट्रस्ट “श्री मंशापूरन बालाजी मन्दिर ट्रस्ट” धर्मश्री सागर (म.प्र.) के नाम से मानव सेवा एवं लोक कल्याण से बनाया हेतु बनाया। मंदिरों के निर्माण हेतु 19 जुलाई 2000 को श्री श्री 108 महंत श्री नृत्य गोपाल दास जी महाराज (अयोध्या वालों) के सानिध्य में भूमि पूजन सम्पन्न। 

श्री बालाजी की विशेष प्रेरणा एवं आदेश से 1 अगस्त 2000 दिन मंगलवार को श्री प्रकाश चन्द्र साहू (रामदास) ने घाटा मेंहदीपुर बालाजी (राजस्थान) के तीनों देवता 1. श्री बालाजी महाराज 2. श्री भैरव बाबा 3. श्री प्रेतराज सरकार एवं रानगिर की श्री हरसिद्धि माँ का आह्वान कर उन्हें एक चबूतरे पर बगैर मूर्तियों के स्थापित किया। इस चबूतरे पर सभी देव अपनी समस्त कलाओं एवं शक्तियों के साथ सशरीर विराजमान हुये।

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