राकेश दुबे@प्रतिदिन। सच कहा जाए तो इस स्थिति में लोकपाल की सबसे ज्यादा जरूरत है, क्योंकि सत्ता पक्ष की गड़बड़ियों पर सवाल उठाना अब तो संसदीय विपक्ष के बूते से बाहर होता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से साफ कह दिया है कि वह लोकपाल की नियुक्ति जल्द से जल्द करे, इसे लटकाकर रखना ठीक नहीं है। लोकपाल की नियुक्ति की मांग करने वाली याचिकाओं पर जब अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। तब केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इस संबंध में सफाई दी थी कि लोकपाल की नियुक्ति में देरी इसलिए हो रही है, क्योंकि बिल में कई सारे संशोधन अभी बाकी हैं। उन्होंने दलील दी कि लोकपाल ऐक्ट के मुताबिक सर्च कमिटी में नेता विपक्ष को होना चाहिए, लेकिन अभी इस पद पर कोई है ही नहीं। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को कमिटी में शामिल करने के लिए ऐक्ट में संशोधन करना होगा, जो कि यह संसद में लंबित है। इस तरह सरकार ने एक तकनीकी पेच निकालकर मामले को टालने की कोशिश की थी, लेकिन इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर लोकपाल बनाने की बात कही है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह इशारा किया है कि वह अपने स्तर पर तकनीकी बधाएं दूर करें, लेकिन लोकपाल की नियुक्ति को अब और न टाला जाए। गौरतलब है कि बीजेपी ने पिछले आम चुनाव में इसे एक अहम मु्द्दा बनाते हुए जनता से लोकपाल बनाने का वादा किया था। लेकिन सरकार बनाते ही उसने इससे किनारा कर लिया। नरेंद्र मोदी सरकार भ्रष्टाचार और कालेधन को समाप्त करने की बात जोर-शोर से दोहराती रहती है, पर उसके एक भी कदम से ऐसा लगा नहीं कि इसके लिए जरूरी संस्थाओं के सुचारु संचालन को लेकर वह गंभीर है। लोकपाल के मामले में उसकी दलीलें इस दिशा में जाती हुई लगती हैं कि संसद में किसी एक दल को असाधारण बहुमत मिलना लोकपाल के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि ऐसे में कोई विपक्षी पार्टी इस हालत में नहीं होगी कि नेता प्रतिपक्ष का पद उसके हाथ आ सके।
देश की विडंबना यह है कि जनहित से जुड़े मुद्दों को सामने लाने का काम अभी न्यायपालिका ही कर रही है। कुछ प्रबुद्ध लोगों और सामाजिक संगठनों ने अगर न्यायपालिका के स्तर पर लोकपाल का मुद्दा न उठाया होता तो शायद लोग सरकारी नीतियों के प्रचार के शोर-शराबे में इसे भूल ही गए होते। सरकार की मंशा बार-बार खुद को पाक-साफ बताकर लोकपाल की भरपाई करने की लगती है। केंद्र सरकार को अब लोकपाल के गठन में देर नहीं करनी चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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