राकेश दुबे@प्रतिदिन। सुकमा में नक्सलियों ने यह हमला उस समय किया है छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के नक्सली प्रभाव वाले 44 जिलों में 5412 किमी सड़क निर्माण परियोजना को मंजूरी दी गई है। इस परियोजना पर चल रहे कार्य को रोकना भी उनका एक मकसद है। नक्सलियों को पता है कि सड़क बनने से सुरक्षाबलों की आवाजाही आसान होगी। नागरिक सुविधाएं आम लोगों तक पहुंचने लगेंगी तो वे नक्सल प्रभाव से बाहर निकल जाएंगे। हालांकि जिस तरह से हमला हुआ और इसमें जितना बड़ा नुकसान हुआ, उससे लगता है कि सुरक्षाबलों से भी चूक हुई है| साथ ही राज्य सरकार के भी नियंत्रण के दावों की भी पोल खुल गई है।
बात यह भी उठ रही है कि जंगल में सड़क निर्माण पार्टी को सुरक्षा देने गए जवान कहीं अपनी खुद की सुरक्षा के लिए बने मानकों में ही तो कोई चूक नहीं कर बैठे। कहा जा रहा है कि नक्सली करीब 300 की संख्या में थे। इतने लोगों के जुटने की सूचना कैसे नहीं पहुंची, यह सवाल भी है। कुछ विशेषज्ञों की राय में माओवाद विरोधी ऑपरेशंस की सबसे बड़ी कमी है केंद्रीय बलों और राज्य पुलिस में समन्वय का अभाव।
राज्य पुलिस को केंद्रीय सुरक्षा बलों के साथ जिस तरह मिल-जुलकर काम करना चाहिए, वह नहीं कर रही है।राज्य पुलिस को थानों-चौकियों से खुफिया जानकारी मिलती रहती है। उसने तत्परता दिखाई होती तो केन्द्रीय बल को सचेत किया जा सकता था। नक्सली समस्या से निपटने को लेकर देश में एक राय नहीं बन पाई है। केंद्र सरकार यह कहकर निश्चिंत हो जाती है कि उसका काम केंद्रीय बल भेजना है, माओवादियों से निपटने का बाकी काम तो राज्य सरकारों का है। जहां तक राज्य सरकारों की बात है तो इस समस्या को सुलझाने के सबके अपने-अपने तरीके हैं। उनमें तालमेल के अभाव से समस्या बिगड़ती जा रही है।इससे निपटने का एक ही तरीका है कि माओवाद प्रभावित इलाकों की जनता के साथ गहरे रिश्ते बनाकर नक्सलियों को अलग-थलग कर दिया जाए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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