कम वर्षा तो लोक प्रयोग को महत्व दें | AGRICULTURE

राकेश दुबे@प्रतिदिन। गर्मी अपने चरम पर है। हमेशा की तरह बुंदेलखंड के तो सैकड़ों गांव वीरान होने शुरू भी हो गए हैं। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक, देश के लगभग सभी हिस्सों में बड़े जल संचयन स्थलों (जलाशयों) में पिछले साल की तुलना में कम पानी बचा है। यह सवाल हमारे देश में लगभग हर तीसरे साल खड़ा हो जाता है कि ‘औसत से कम’ पानी बरसा, तो तस्वीर क्या होगी? देश के 1३  राज्यों के १३५ जिलों की कोई दो करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि हर दस साल में चार बार पानी के लिए त्राहि-त्राहि करती है।

भारत का क्षेत्रफल दुनिया की कुल जमीन या धरातल का २.४५ प्रतिशत है। दुनिया के कुल संसाधनों में से चार फीसदी हमारे पास हैं और जनसंख्या में हमारी भागीदारी १६  प्रतिशत है। हमें हर वर्ष बारिश से कुल ४००० अरब घन मीटर (बीसीएम) पानी प्राप्त होता है, जबकि उपयोग लायक भूजल १८६९ अरब घन मीटर है। इसमें से महज,१२२२  अरब घन मीटर पानी ही काम आता है। जाहिर है, बारिश का जितना हल्ला होता है, उतना उसका असर पड़ना नहीं चाहिए। कम बारिश में भी उग आने वाले मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, कुटकी आदि की खेती और इस्तेमाल सालों-साल कम हुए हैं, वहीं ज्यादा पानी मांगने वाले सोयाबीन व अन्य नगदी फसलों ने खेतों में अपना स्थान मजबूती से बढ़ाया है। इसके चलते देश में बारिश पर निर्भर खेती बढ़ी है। 

हमारी लगभग तीन-चौथाई खेती बारिश के भरोसे है। जिस साल बादल कम बरसते हैं, आम आदमी के जीवन का  पहिया जैसे पटरी से नीचे उतर जाता है। और एक बार गाड़ी नीचे उतरी, तो उसे अपनी पुरानी गति पाने में कई-कई साल लग जाते हैं। मौसम विज्ञान के मुताबिक, किसी इलाके की औसत बारिश से यदि १९ प्रतिशत से कम  पानी बरसता है, तो इसे ‘अनावृष्टि’ कहते हैं। मगर जब बारिश इतनी कम हो कि उसकी माप औसत बारिश से १९ प्रतिशत से भी नीचे रह जाए, तो इसको ‘सूखे’ के हालात कहते हैं।

गुजरात के जूनागढ़, भावनगर, अमेरली और राजकोट के १०० गांवों ने पानी की आत्मनिर्भरता का गुर खुद ही सीखा। विछियावाड़ा गांव के लोगों ने डेढ़ लाख रुपये और कुछ दिनों की मेहनत के साथ १२  रोक बांध बनाए और एक ही बारिश में ३००  एकड़ जमीन सींचने के लिए पर्याप्त पानी जुटा लिया। ऐसे ही प्रयोग मध्य प्रदेश में झाबुआ व देवास में भी हुए। तलाशने चलें, तो कर्नाटक से लेकर असम तक और बिहार से लेकर बस्तर तक ऐसे हजारों हजार सफल प्रयोग सामने आ जाते हैं, जिनमें स्थानीय स्तर पर लोगों ने सूखे को मात दी। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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