SHAGUFTA RAFIQUE: 12 की उम्र में बार डांसर, 17 में कॉलगर्ल, अब स्क्रिप्ट राइट है

कभी इस लड़की की जिंदगी बेहद दर्दभरी और गुमनाम रही, लेकिन आज ये भट्ट कैंप का जाना-पहचाना चेहरा है। ये हैं शगुफ्ता रफीक, जो भट्ट कैंप के लिए 'वो लम्हे' से लेकर 'आवारापन', 'राज', 'मर्डर 2' और 'आशिकी 2' जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों की कहानी और डायलॉग्स लिख चुकी हैं। शगुफ्ता रफीक की जिंदगी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। बचपन में ही एक ऐसा हादसा हुआ जिसने शगुफ्ता की जिंदगी ही पलट दी। शगुफ्ता अनाथ थीं और उन्हें अनवरी बेगम ने पाला। अनवरी बेगम ने शगुफ्ता को हर वो खुशी दी जिसकी वो हकदार थी लेकिन जल्द ही ऐसा वक्त आ गया जब गरीबी की चादर ने उन्हें ढक लिया। अनवरी को घर का गुजारा करने के लिए अपनी चूड़ियां तक बेचनी पड़ीं। घर की आर्थिक स्थिति डगमगा गई थी। जरूरत में अनवरी शुगफ्ता रफीक का सहारा बनीं थीं और अब शगुफ्ता की बारी थी को वो ये अहसान चुकाएं।

इसी के चलते 12 साल की शगुफ्ता ने प्राइवेट पार्टियों में नाचना शुरु कर दिया। ये पार्टियां कोई आम पार्टियां नहीं थीं बल्कि इनका वातावरण बिल्कुल एक कोठे जैसा होता था। बड़े-बड़े लोग अपनी प्रेमिकाओं और वेश्याओं के साथ आते थे। शगुफ्ता नाचतीं और वो लोग पैसे फेंकते। पैसे देख शगुफ्ता रफीक ऐसे खुश होतीं जैसे पूरी कायनात ही मिल गई हो। जिस परिवार ने शगुफ्ता को पाला, सहारा दिया उसका अहसान चुकाने के लिए शगुफ्ता उन पार्टियों में नाचती रहीं और पैसों की बारिश होती रही। ये सिलसिला लगातार 5 साल तक चला। 

17 की उम्र में वो भयावह दौर आया जिसका अहसास खुद शगुफ्ता रफीक को भी नहीं था। शगुफ्ता अब वेश्यावृति की तरफ बढ़ चुकीं थीं। सालों तक ये सिलसिला चलता रहा। शगुफ्ता की मां को पता था कि वो वेश्यावृति कर रही हैं लेकिन शगुफ्ता मन ही मन इस बात को लेकर खुश थीं कि कम से कम वो अपने परिवार का पेट तो भर पा रही हैं, उन्हें वो सब तो दे पा रही हैं जिसके हकदार उनके परिवारवाले हैं। शगुफ्ता को तसल्ली थी कि अब उनकी मां को बस में धक्के नहीं खाने पड़ते थे। 

ज्यादा पैसे कमाने की ललक में शगुफ्ता रफीक दुबई तक पहुंच गईं और वहां बार डांसर के तौर पर काम किया लेकिन मां की बीमारी के चलते उन्हें वापस लौटना पड़ा। कैंसर से उनकी मां की मौत हो गई और लगा जैसे मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा। 

लेकिन, उन्होने अपने सपने को जिंदा रखा। फिर एक दिन डायरेक्टर महेश भट्ट ने उन्हें को काम का मौका दिया। लेकिन, शगुफ्ता के सबसे बड़े मददगार बने कलयुग, आवारापन और आशिकी- 2 के डायरेक्टर मोहित सूरी। 2005 मे डांस बार बंद होने के बाद उनकी पहली फिल्म आई 2006 में। फिल्म थी ‘वो लम्हे’ इस फिल्म का स्क्रीन प्ले और डायलॉग शगुफ्ता रफीक के ही थे।

इसके बाद तो शगुफ्ता के पास काम की लाइन लग गई। इसके बाद की उनकी फिल्में हैं आवारापन (2007) स्क्रीनप्ले और डायलॉग, धोखा (2007)-स्क्रीनप्ले और डायलॉग, शो-बीज (2007)-ऐडीशनल स्क्रीनप्ले राज ( द मिस्ट्री कन्टीन्यू ) (2009)-स्क्रीनप्ले और डायलॉग जश्न ( द म्यूजीक विदीन) (2009)-स्क्रीनप्ले और डायलॉग, कजरारे (2010)-डायलॉग।

इसके साथ ही मर्डर-2 (2010)-स्क्रीनप्ले और डायलॉग, जन्नत-2 (2012) स्टोरी, स्क्रीनप्ले, जिस्म-2 (2012) डायलॉग, राज 3डी ( द थर्ड डायमेंशन ) (2012) स्टोरी ,स्क्रीनप्ले और डायलॉग, आशिकी -2 (2013) स्टोरी ,स्क्रीनप्ले और डायलॉग. शगुफ्ता रफीक की जिंदगी की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है
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