शिवराज सिंह यदि 'सबका साथ' चाहते हैं तो प्रमोशन में आरक्षण की जिद छोड़ दें

अधिराज अवस्थी/भोपाल। कल मप्र सरकार का बजट पेश हुआ। यह स्पष्ट संकेत है बजट में कि तैयारी चुनाव की शुरू हो चुकी है, जैसा विशेषज्ञों ने अनुमान प्रकट किया। जो दिशा बजट को दी गई, उससे यह भी स्पष्ट है कि सरकार एक बड़े वर्ग की नाराजी को साधने की कोशिश कर रही है। कर्मचारी का असंतोष तो स्पष्ट था लेकिन बहुसंख्यक जागृत हो चुका है अपने विरुद्ध हो रहे अन्याय को लेकर यह भी सरकार समझ चुकी है। 

'सपाक्स' की भूमिका इस स्थिति के लिये कितनी जवाबदार है, इसका आकलन दूसरे करेंगे पर इतना तय है कि इस हालात के लिये हम सब के प्रयास भलीभूत हुए हैं। पहली बार सही मायनों में 'सबका साथ सबका विकास' नारे पर सरकार चलती दिख रही है। यह एक वर्ग विशेष के प्रति अब तक जाहिर किये गये अनुराग से स्पष्ट विचलन है।

सरकार की स्थिति रस्सी पर चलकर करतब दिखाने वाले नट के जैसी हो रही है, जो संतुलन के लिये लकड़ी का सहारा लेता है। बेहतर तो यह होता कि सरकार उच्च न्यायालय के निर्णय को यथावत मान लेती। सरकार की जिद मात्र इतनी है कि जो गलत नियमों के अन्तर्गत पद्दोँनत हुए हैं वे पदावनत न हों। अब तक सर्वोच्च न्यायालय के इस संबन्ध में पारित सभी निर्णय यह पुष्टि कर चुके हैं कि गलत ढंग से पदोन्नति पाये लोगों को पदावनत होना होगा। अत: सरकार वास्तव में 'सबका साथ सबका विकास' की पक्षधर है तो सर्वोच्च न्यायालय से अपील वापिस लेकर न्याय का साथ दे। वरिष्ठता के आधार पर पदोँनतियाँ प्रारम्भ करे, जिस पर कोई रोक नहीं है। यदि वो अंत समय तक अपनी जिद पर टिके रहे तो सावधान! 'माई का लाल' बहुत महंगा पढ़ेगा। 

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