घोटाला: सरकारी गोदामों में सड़ा दिया गया 5000 करोड़ का अनाज

भोपाल। यह लापरवाही नहीं सुनियोजित घोटाला है। गरीबों को बांटने के लिए सरकार ने अनाज खरीदा, गोदामों में भरा और उसका एक बड़ा हिस्सा गोदामों में ही सड़ गया। पहली नजर में यह लापरवाही लगती है, लेकिन कई मामलों में सामने आईं शिकायतों और जांच के दौरान पाया गया है कि अनाज सड़ा नहीं था, बल्कि रिकॉर्ड में सड़ाया गया है। अफसरों ने पहले ही घटिया अनाज खरीदा था जिसे वितरित नहीं किया जा सकता था। रिकॉर्ड में सड़ गया दिखाकर उसे नष्ट कर दिया जाता है। 

पत्रकार अमित देशमुख की पड़ताल बताती है कि उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के अनुसार पिछले 2 साल में प्रदेश के सरकारी गोदामों में रखा 157 लाख टन अनाज सड़ गया, जिसकी अनुमानित कीमत पांच हजार करोड़ रुपए थी। इसमें 54 लाख टन गेहूं व 103 लाख टन चावल शामिल था। 

मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी जा चुका है लेकिन अक्सर इसमें लापरवाही स्वीकार कर ली जाती है। अत: वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट सभी राज्यों को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि अनाज गोदामों में सड़े इससे बेहतर है कि गरीबों में बांट दे, परंतु ऐसा नहीं किया गया। शायद इसलिए क्योंकि यदि अनाज बांटते तो घोटाले का खुलासा हो जाता। प्रदेश में अनाज भंडारण का जिम्मा एफसीआई, मार्कफेड और नागरिक आपूर्ति निगम पर है। आरोप है कि कई अधिकारी इस खेल में शामिल हैं। 

सबकुछ गुपचुप चलता है 
गोदामों में अनाज के खराब होने की बात अधिकारी भी छिपाते हैं। खाद्य मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे ने जुलाई 2016 में जबलपुर के सहकारी गोदाम में औचक निरीक्षण किया था। उन्होंने पाया कि बड़े पैमाने पर अनाज सड़ चुका था। आकलन करने पर यह मात्रा करीब दस हजार क्विटंल अनाज की निकली। इससे पूर्व 2013 में सिंगरौली में 26 हजार क्विंटल और सीधी में चार हजार क्विंटल धान सड़ चुका है।

शराब कंपनियों के फायदे का खेल 
नाम न छापने के शर्त पर वेयरहाउस से जुड़े कुछ कर्मचारियों ने बताया कि अनाज खराब होने की एक बड़ी वजह मिलीभगत है, जिसका फायदा शराब कंपनियों को पहुंचाना है। अनाज जानबूझकर सड़ने दिया जाता है जिससे शराब कंपनियां बीयर व अन्य मादक पेय बनाने के लिए सड़े हुए अनाज खासतौर से गेहूं को औने-पौने दाम में खरीद सके।

ऐसे समझें नुकसान का गणित
वर्ष 2013-14 और 2014-15 में मध्यप्रदेश में गोदामों में जो अनाज सड़ा उसकी कीमत पांच हजार करोड़ से ज्यादा की थी। इसमें चावल जो सरकार 2800 रुपए क्विंटल खरीदती है, के हिसाब से 157 लाख टन यानी 15 करोड़ 70 लाख क्विंटल की कीमत ही चार हजार 396 करोड़ होती है। वहीं गेंहू का समर्थन मूल्य प्रति क्विंटल 1700 रुपए होता है। इस हिसाब से 54 लाख टन गेंहू यानी पांच करोड़ 40 लाख क्विंटल गेहूं की कीमत 918 करोड़ रुपए होती है।

समर्थन मूल्य की राजनीति 
जानकार बताते हैं कि अनाज की खरीदी में समर्थन मूल्य की राजनीति भी जमकर चलती है। सरकार किसानों से अनाज को खरीद लेती है, लेकिन सही भंडारण और भ्रष्टाचार पर लगाम न होने के चलते अनाज सड़ जाता है। वर्ष 2016 में प्याज की हुई बंपर पैदावार के बाद भी ऐसा हुआ था। सरकार ने छह रुपए किलो से प्याज खरीदा, लेकिन हजारों टन प्याज गोदामों में ही सड़ गया। प्याज खरीदी में सरकार को 60 करोड़ से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा ।
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मैं वर्ष 2016 में ही आया हूं। इसलिए मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन जहां तक बात अनाज खराब होने की है तो उस वक्त गोदामों की क्षमता कम थी और अनाज ज्यादा था जिस वजह से बाहर कैंप में भी रखना पड़ा। संभवत: यह उसी समय के आकड़े है। लेकिन अब स्थिति ऐसी नहीं है। वर्ष 2015-16 में कितना अनाज खराब हुआ अभी यह नहीं बता सकता पर पूर्व के सालों की तुलना में यह बेहद कम है। 
फैज अहमद किदवई, 
एमडी मप्र राज्य नागरिक आपूर्ति निगम

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