चंडीगढ़। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि आरक्षित श्रेणी से जुड़ा कोई व्यक्ति किसी सामान्य जाति के बच्चे को गोद लेता है तो उसे अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र का लाभ लेने से वंचित नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट की जस्टिस जयश्री ठाकुर ने यह फैसला संगरूर निवासी रतेज भारती की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया। याचिकाकर्ता रतेज भारती ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता का जन्म ब्राह्माण परिवार में साल 1967 में हुआ था। जन्म होते ही उसकी मां की मौत हो गई थी।
जब उसकी उम्र दस साल की थी तो रामदासिया जाति के एक परिवार ने उसे 23 नवंबर 1977 को कानूनी तौर पर गोद ले लिया लेकिन सरकार ने उसे 3 जनवरी 2014 को बीस साल बाद यह कहकर निकाल दिया गया कि उसे गोद लेना वैध नहीं है और वह आरक्षित जाति का लाभ नहीं ले सकता।
नौकरी से निकालना उचित नहीं हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में याची को सक्षम अधिकारी की ओर से 1992 में जाति प्रमाणपत्र जारी किया गया था।
इसके आधार पर 1994 में उसने सरकारी नौकरी प्राप्त की। उसे नौकरी से निकालना उचित नही हैं, क्योंकि उस समय तक उसका जाति प्रमाणपत्र रद नहीं किया गया था।
जाति प्रमाणपत्र जारी करने की भी 2 बार जांच हुई और यह सही पाया गया। इसका भी कोई सबूत नहीं है कि प्रमाणपत्र गलत तरीके से हासिल किया गया। उसे नौकरी में वापस लेते हुए सभी लाभ देने के निर्देश दिए गए। कोर्ट ने यह भी कहा जब तक याची ने काम नहीं किया, उस समय की उसे तनख्वाह नहीं दी जाएगी।