व्यंग्य: पहली नजर का प्यार और अमेरिकी मान्यता

अरुण अर्णव खरे। अमेरीकियों ने एक बार फिर शोध कर तमाम पुरानी मान्यताओं को धता बता दिया है। उनके नए शोध ने पहली नजर में प्यार करने वालों पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है। उनका आकलन कि पहली नजर का प्यार-व्यार सब कोरी बकवास है। प्यार करने के लिए तो चार बार नजरें चार करने की जरूरत होती है। चूंकि शोध अमेरिका ने किया था अतएव आंख बंद करके मान लेने के अलावा हम भारतीयों के पास कोई चारा ही नहीं है फिर भी मैं ऊहापोह में रहा आया उनकी बात मांनू या नहीं। उनके इस शोधपरक निष्कर्ष ने मुझे कई दिनों तक बेचैन रखा। मुझे अपने उन मित्रों पर तरस आने लगा जो पहली नजर में प्यार होने के किस्से बढ़-चढ़ कर सुनाते रहते थे।

मेरी कालोनी मे एक अति घनघोर टाइप के बुद्धिजीवी रहते हैं। सम्पूर्णानन्द चतुर्वेदी, नाम के अनुरूप हर फ़ील्ड मे दख़ल रखने वाले या यूँ कहें हर फ़ील्ड में दखल देने वाले चाहे वह उस फ़ील्ड के बारे मे जानकारी क्रिकेट के किंग्स पेयर्स जैसी रखते हों। किंग्स-पेयर्स यानि कि दोनों ही पारियों में पहली ही गेंद पर धराशाई हो जाने वाला शूरवीर। इसी वजह से कालोनी के अधिकांश निवासी उनसे कन्नी काटते थे। उन्हें देख कर कई तो रास्ता ही बदल देते थे जैसे किसी काली बिल्ली ने रास्ता काटकर अपशकुन कर दिया हो। मुझे घर के दरवाज़े पर खड़ा देखकर वह आश्चर्यचकित रह गए और बड़ी आत्मीयता से अंदर ले गए। आहलादवश वह पूँछना ही भूल गए कि मै किसलिए आया हूँ। मैने ही उन्हें आने का कारण बताया "आपने भी अख़बारों मे पढ़ा होगा पहली नज़र के प्यार के बारे में .. अमरीकियों ने कह दिया है कि यह संभव ही नहीं .. प्यार करने के लिए कम से कम चार बार नैन मटक्का ज़रूरी है .. आप क्या सोचते हैं इस बारे मे"

मेरा प्रश्न सुनकर वह परम दार्शनिक मोड मे आ गए -"मुझे भी उनकी बात सच लगती है - सबसे पहली बात तो यह प्रेम के प्रकाण्ड पण्डित और सभी विवाहतों के प्रथम स्तुत्य देवपुरुष वात्स्यायन जी ने पहली नजर में प्यार के बारे मे कुछ नहीं लिखा है। 
दूसरी बात: हम तो पिछले चालीस वर्षों से नजरें मिला रहे हैं पर कसम कामदेव की आज तक प्यार पूरी तरह से परवान नहीं चढ़ा। दर असल प्यार धीमी आंच में पकने वाली ऐसी रेसेपी है जो जितनी देर तक पकेगी उतनी ही स्वादिष्ट बनेगी"  

मन में आया कि उनसे पूंछ डालूं, फिर क्यूं अब तक उनका प्यार परवान नहीं चढ़ सका। क्या आंच ज्यादा तेज हो गई थी या फिर रिसेपी बुक के अनुसार तेल-नमक का संतुलन बिगड़ गया था। तभी उनके बचपन के मित्र मथुरादास जी बैठक में आ टपके। पहली नजर में प्यार के बारे में वह शहर के पहले ज्ञात भुक्तभोगी थे। उन्होंने उस समय पहली नजर में प्यार किया था जब लड़कियां घर में रहकर ही चूल्हा-चौके में बिजी रहती थीं। उनके पास आज की तरह ना तो कालेज जाने की छूट थी और ना ही मॉल बगैरा में मिलने का आप्शन था। मथुरादास ने बताया - भाई -- उनका प्यार तो सौ फीसदी पहली नजर का ही था। उनकी नजरें अपनी उनसे उस समय मिली थीं जब वह कण्डे थाप रही थी। और दूसरी बार सीधी सुहागरात में मिली थी। अमेरीकियों के चार बार नजरें मिलाने के फार्मूले पर वह भरोसा करते तो अब तक कुवारें ही रह जाते"

दोनों की बातों ने मुझे बहुत कन्फ्यूज कर दिया था। अब मैं किसी ऐसे शख्स की तलाश में था जो जरा नई सोच वाला हो। वेलेण्टाइना डे पर मेरी तलाश पूरी हो गई। चिनार पार्क के पीछे ठण्डी सड़क पर एक नौजवान जोड़ा टकरा गया। उससे पूंछा तो बोला - "अंकल - कमाल करते हैं आप भी -- अमेरिका की हर बात पर आंख बंद करके भरोसा करने की आदत कब जाएगी - वो क्या बताएंगे इस बारे में। जहां चार बार नजरें मिलने से पहले ही लोग पहली से तलाक लेकर दूसरी से शादी रचा लेते हैं" 

वह थोड़ा रुका, फिर बोला - "अंकल आप तो उस जमाने के हैं जब नजरें मिलती ही नहीं थी और रोटोमेक्स का पेन खरीदने से ही लिखते-लिखते लव हो जाता था। और अब हमारा जमाना है जब चैट करते-करते लव हो रहा है। अब नजरें मिलने तक कौन इंतजार करे"

नौजवान की बात मुझे अंदर तक असर कर गई। अमेरिकी भले ही चांद और मंगल पर जीवन खोज रहे हों पर प्यार के मामले में वे पीछे की ओर जा रहे हैं। जहां हमारे देश में बिना नजरें मिले प्यार हो रहा है वहां वे प्यार के लिए चार बार नजरें मिलने की अनिवार्यता पर जोर दे रहे हैं। कहीं तो हम अमेरिका से आगे हैं।
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अरुण अर्णव खरे
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