कल ​तक जो ट्रंप साहब की महबूबा हुआ करती थी, अब मंटू की बेडौल अम्मा बन गई

ब्रजेश उपाध्याय। गांव में खपरैल की टपकती हुई छत के नीचे मास्टरजी पढ़ाया करते थे- अ से अनार और दो दूनी चार। जब पढ़ाई से बचने के लिए हम टपकती हुई छत दिखाते थे तो कभी घु़ड़की तो कभी कान के नीचे एक जोरदार वाला लगाकर कहते थे, "नालायकों कागज के नहीं बने हो कि गल जाओगे। पढ़ाई में मन लगाओ।"

इन दिनों व्हाइट हाउस भी उसी खपरैल की छत वाले स्कूल की तरह टपक रहा है। ट्रंप टीम दोपहर की प्रेस कांफ्रेंस में लीक को रोकने के लिए लीपा-पोती कर रही होती है, अ से अनार की जगह अ से नारंगी और दो दूनी चार की जगह दो दूनी पांच की दलील थोप रही होती है।

लेकिन लीक का आलम ये है कि शाम होते-होते सब पर पानी फिर जाता है। बूंद मूसलाधार में बदल जाती है और इस हफ्ते तो बहाव इतना तेज था कि राजा ट्रंप के सबसे दुलारे दरबारियों में से एक बहा चले और उसके बाद जो कीचड़ फैल रहा है वो कहीं दलदल न बन जाए इसका डर अलग है। अब खुद दलदल में फंसे बौखलाए हाथी की तरह ट्विटर पर चिंघाड़ रहे हैं।

कहां तो राजा ट्रंप वॉशिंगटन के सियासी दलदल को खत्म करने के वादे पर चुनाव जीत कर आए थे और अब खुद दलदल में फंसे बौखलाए हाथी की तरह ट्विटर पर चिंघाड़ रहे हैं। कह रहे हैं नामुराद लीक करनेवालों को बख्शा नहीं जाएगा। न तो कोई महावत है न कोई मास्टरजी जो कान के नीचे लगाकर ये कहने की जुर्रत कर सकें---मियां लीक को छोड़ो, काम पर ध्यान लगाओ।

वैसे वक्त-वक्त की बात है। कल तक ऐसे ही लीक्स से राजा साहब महबूबा की तरह इश्क करते थे। जब हिलेरी क्लिंटन के ईमेल्स बरस रहे थे तो उससे रेगिस्तान में पड़नेवाली बारिश की फुहार की तरह आनंदित होते थे। बड़े प्यार से कहते थे, "आई लव विकीलीक्स।"

अब वही महबूबा चुन्नु, मुन्नु, मीना, मंटू की बेडौल अम्मा बनकर साथ रहने लगी है तो आंखों को सुहा नहीं रही। कल तक उसे कामिनी कहते थे आज कुल्टा कह रहे हैं। हर गुजरते दिन के साथ मीडिया वालों के साथ उसकी ताकझांक बढ़ती ही जा रही है। गुस्सा मीडियावालों पर भी उतर रहा है।

कहां तो अरबों डॉलर की दीवार बनाकर उस पर अपना नाम लिखवाकर पूरे मेक्सिको को रोकने की तैयारी कर रहे थे। और यहां अपने ही घर की दीवार के सुराखों से कानाफूसी चल रही है। गुस्सा मीडियावालों पर भी उतर रहा है। कभी बेईमान तो कभी फेक न्यूज कह कर उन्हें लताड़ते हैं, लेकिन ये टीवी-अखबारवाले तो इस नौकरी में घुसते ही हैं मोटी चमड़ी लेकर।

किसी देश में उन्हें "प्रेस्टीट्यूट" कहा जाता है तो कहीं 'रॉ का एजेंट'। ऐसे नामों की तो उन्हें आदत पड़ चुकी है। कहां फंस गए राजा साहब। करें तो क्या करें। ये वॉशिंगटन है ही गंदी और बदनाम जगह। चुनावी रैलियां कितनी अच्छी होती थीं। एक जुमला कहते थे, लोग ट्रंप, ट्रंप, ट्रंप, ट्रंप के नारे लगाते थे।

यहां एक जुमला कहते हैं, उस पर चार सवाल खड़े हो जाते हैं। अब बहुत हो गया। अरे प्लेन निकालो रे! राजा साहब फ्लोरिडा जाएंगे। इस शनिवार वहां एक रैली करेंगे। लाल टोपी पहने हुए सच्चे लोगों से मिलेंगे और वहीं पर थोड़ी देर अमरीका को फिर से महान बनाएंगे।
लेखक/पत्रकार श्री ब्रजेश उपाध्याय, बीबीसी हिंदी में सेवाएं देते हैं। 

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