तीन तलाक, निकाह हलाला गंभीर विषय

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत के मुस्लिम समाज में प्रचलित ‘तीन तलाक’ बहु विवाह और ‘निकाह हलाला’ कितने ज्वलंत और महत्त्वपूर्ण मुद्दे होते जा रहे  हैं। इस विषय की गंभीरता का अंदाजा इसी से चलता है कि सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ इसकी सुनवाई कर रही है। सम्पूर्ण भारतीय समाज में तीन तलाक और बहुविवाह का मसला शुरू से बहस के केंद्र में रहा है।

इस विषय को लेकर भारतीय मुस्लिम समाज विभाजित है। मुस्लिम समाज का पढ़ा-लिखा और बुद्धिजीवी तबका अपने समाज में प्रचलित तीन तलाक और बहु विवाह की प्रथा का समर्थन नहीं करता, जबकि दूसरी ओर कट्टरपंथी समूह संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत अपने सामाजिक रीति-रिवाज और प्रथाओं में किसी भी तरह का छेड़छाड़ या परिवर्तन करने का विरोध करता है। इस दृष्टि से यह मसला आधुनिकता बनाम परम्परा के बीच टकराव का है।

दरअसल, यह पूरा मसला इसलिए भी इतना गंभीर और पेचीदा है कि यह व्यक्तिगत और व्यवहार की आजादी से जुड़ा हुआ है लेकिन जो लोग मुस्लिम पसर्नल लॉ को संविधान के दायरे में लाने की वकालत करते हैं तो वे धार्मिक रीति-रिवाजों और नागरिक अधिकारों को अलग-अलग नजरिये से देखते हैं। दरअसल, कोई भी समाज हमेशा एक जगह ठहरा नहीं रहता। वह हमेशा गतिशील रहता है और इस रूप में वह समय के साथ परिवर्तनशील रहता है। 

इसी सामाजिक गतिशीलता की मांग के अनुसार सामाजिक कानूनों की प्रवृत्ति व स्वरूप भी बदलता रहता है। मनुष्य-समाज की यह फितरत है कि वह सदियों से चली आ रही रूढ़ परम्पराओं और सामाजिक मूल्यों में मनुष्य व समाज विरोधी तत्वों का अन्वेषण करती रहती है।
इसी के फलस्वरूप भारतीय समाज के हिंदू समाज में सदियों से चली आ रही सती प्रथा, बाल-विवाह, अस्पृश्यता आदि सामाजिक बुराइयों को कानूनन खत्म किया जा सका। इसलिए यह बेहिचक कहा जा सकता है कि मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला जैसे लैंगिक असमानता और भेदभाव पर आधारित तथाकथित  रीति-रिवाज और परम्पराओं पर फौरन रोक समग्र समाजिक हित में होगा।

इस मसले पर जो सामाजिक चेतना पैदा हो रही है और दूसरे विरुद्ध मुस्लिम औरतों की जो आवाजें उठ रही हैं। उसे अब दबाया नहीं जा सकता। सवाल है कि धर्म और मजहब के नाम पर होने वाले लैंगिक भेदभाव और गलत आचरण सभ्य व आधुनिक समाज आखिर कब तक बर्दाश्त करेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !