राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार के मामलों में दो फैसले देकर राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठती जन-जन की आवाज़ को बुलंद किया है। यह अभिव्यक्ति भ्रष्टाचार के दो बड़े मामलों में आये ऐतिहासिक फैसले हैं। सर्वोच्च न्यायलय के यह फैसले जहाँ स्वागत योग्य है, वही यह सवाल भी सहज रूप से जागृत करते हैं कि इससे नीचे के न्यायालय क्यों नीर क्षीर पृथक दिखते मामलों में अपनी पृथक राय रखते हैं। ख़ैर ! पहला फैसला तमिलनाडु में करीब-करीब सीएम की कुर्सी तक जा पहुंची शशिकला के खिलाफ है। आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी करार देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें निचली अदालत से मिली चार साल जेल की सजा पर अपनी मुहर लगा दी है। दूसरा फैसला मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापम घोटाले से जुड़ा है, जिसके तहत फर्जी तरीकों से एमबीबीएस में दाखिला लेने वालों का प्रवेश अंतिम तौर पर रद्द कर दिया गया है।
मुख्यमत्री पद से चंद कदम दूर रही शशिकला को अब जेल जाना होगा, हालांकि चार साल की सजा के खिलाफ वे न्यायिक समीक्षा की अर्जी लगा सकती हैं। इसके अलावा दस साल चुनाव न लड़ने की शर्त भी उन पर आयद होगी, यानी सीएम का पद व्यवहारत: उनकी पहुंच से बाहर हो चुका है। हाल के वर्षों में किसी प्रदेश में सत्ता संघर्ष को इतने सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला कोई और फैसला शायद ही आया हो। मगर इस मामले में भी अंतिम फैसले तक पहुंचने में अदालत को बीस साल लग गए। इस अवधि में मुख्य दोषी जयललिता दुनिया से विदा भी हो गईं। कैसी विडंबना है कि जिस मामले में तमाम सबूतों पर गौर करने के बाद निचली अदालत ने जयललिता को 100 करोड़ रुपये का जुर्माना और चार साल जेल की सजा सुनाई, उसी में ठीक उन्हीं साक्ष्यों के आधार पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया, और अब उन्हीं साक्ष्यों की रोशनी में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोबारा दोषी करार दिया है। न्यायपालिका के इन डोलते निर्णयों की वजह क्या कभी सामने आएगी?
मध्यप्रदेश के व्यापम घोटाले को लें तो इसका पर्दाफाश होने और इसकी जांच के दौरान हैरतअंगेज ढंग से एक के बाद एक गवाहों की अप्राकृतिक मौत होते जाने के बावजूद न तो मध्य प्रदेश के सत्तारूढ़ नेताओं के कान पर जूं रेंगी, न ही बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उनके खिलाफ किसी कार्रवाई की जरूरत महसूस की। इस फैसले से उन लोगों को तो सजा मिल गई, जो इस पूरे मामले में सबसे कमजोर हैं, लेकिन जिन लोगों ने उनसे पैसे लिए और व्यवस्था को पंगु बनाकर इस पूरे भ्रष्टाचार को संभव बनाया, उन तक कानून के हाथ पहुंचने के तो अभी आसार भी नजर नहीं आ रहे हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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