मिल बाचें मध्यप्रदेश: मोर का मुरब्बा बनाकर लौटे हैं शिवराज के मंत्री

उपदेश अवस्थी/लावारिस शहर। 'मिल बाचें मध्यप्रदेश' की परिकल्पना जिस भी अफसर ने की होगी, मैं गारंटी देता हूं, आज माथा पकड़ के बैठा होगा। एक अतुलनीय, अद्भुत, अद्वितीय और अनूठे आयोजन का कचरा कैसे किया जाता है, यदि इस सबक को किसी किताब में दर्ज करना हो तो 'मिल बाचें मध्यप्रदेश' का जिक्र किया जाना अनिवार्य है। सोचा था एक दिन समाज के कुछ सफल लोग स्कूलों में जाएंगे और उन्हे सफलता के मंत्र सिखाएंगे। इस दिन बच्चों को कुछ ऐसा मिलेगा जो स्कूल में हर रोज नहीं मिलता लेकिन मप्र के मंत्रियों ने तो मोर का भी मुरब्बा बना डाला। 

उज्जैन में ऊर्जा मंत्री पारस जैन साहब पहुंचे। पहले मिनट में एक किताब हाथ लगी। उसकी जिल्द उखड़ी हुई थी। बस मंत्रीजी भी उखड़ गए। पहले शिक्षक का वेतन पूछा फिर बच्चों के सामने टीचर को डांटा फिर भाषण दिया और चले गए। 

खंडवा में स्कूल शिक्षामंत्री विजय शाह आदिवासी वनग्राम घुटीघाट के प्राथमिक स्कूल में पहुंचे। पहले बच्चों का टेस्ट लिया फिर टीचर का टेस्ट लिया। अध्यापक से उसका वेतन पूछा। बच्चों के सामने डांटा। धमकी दी। फिर डीपीसी-डीईओ को भी लताड़ा और चले गए। 

बुरहानपुर के शाहपुर के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में बच्चों की क्लास लेते प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व सांसद नंदकुमार सिंह चौहान ने क्लास में 'नंदकुमार चालीसा' सुनाया। 

पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव का तो रंग ही कुछ और था। ना उन्होंने जांच की और ना ही डांटा डपटा। बल्कि वो तो इस कार्यक्रम में भी विरोध का शिकार हो गए। 'मिल बाचें मध्यप्रदेश' के लिए गोपाल भार्गव आ रहे हैं, इसलिए पेरेंट्स ने अपने बच्चे ही नहीं भेजे। मंत्री भार्गव बुदबुदाते हुए कि यहां स्टेडियम बनवाकर गलती कर दी...। चले गए। 

सागर के रामपुरा स्थित कन्या मावि की आठवीं की छात्रा मुस्कान से जब वित्तमंत्री जयंत मलैया ने भी बच्चों का टेस्ट ले डाला। एक छात्रा की इस कदर रैगिंग की कि वो क्लास में ही रो पड़ी। 

वन मंत्री डॉ गौरीशंकर शेजवार रायसेन के बारला स्कूल में पहुंचे। यहां उनके कक्षा में पहुंचने पर बच्चे खड़े नहीं हुए। गुस्साए मंत्रीजी बच्चों को सस्पेंड तो कर नहीं सकते थे। नैतिकता की दुहाई देकर चले गए। 

कुछ जिलों में तो भाजपा के पदाधिकारी, अधिकारियों और कार्यकर्ताओं का लश्कर लेकर ऐसे स्कूल पहुंचे जैसे गणतंत्र दिवस का झंडावंदन करने जा रहे हों। इधर गैरराजनैतिक कार्यक्रम के बावजूद कांग्रेसियों ने शिरकत ही नहीं की। बयानी विरोध करते रहे। कुछ और मंत्रियों के प्रसंग रिकॉड में हैं, लेकिन बात कुछ ज्यादा लंबी हो जाएगी। इसलिए उन्हे रहने देते हैं। 

अपने ही सवाल में फंस गए मुख्य सचिव
रायसेन के ग्राम खोहा के मिडिल स्कूल की आठवीं कक्षा में शिक्षक की सीट पर बैठे प्रदेश के मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह से उम्मीद थी कि वो जरूर कुछ पढ़ाएंगे। लेकिन वो भी सवाल कर बैठे और अपने ही सवाल में फंस गए। उन्होंने बच्चों से सवाल किया- बच्चाें आप में से कौन कौन अखबार पढ़ता है और टीवी पर समाचार सुनता है? एक बच्चा खड़ा होकर बोला- सर, हमारे गांव में बिजली नहीं रहती,15 दिनों से डीपी जली पड़ी है, हम कैसे समाचार सुनें। क्लास के सभी बच्चे एक सुर में..सर! लाइट न होने से पढ़ भी नहीं पा रहे। बच्चों की बात सुनकर सीएस के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आए। लेकिन बात को संभालते हुए उन्होंने कहा- हम तो चिमनी की रोशनी में पढ़े हैं.. पढ़ने के लिए बहाना नहीं बनाते।

लव्वोलुआब यह कि 
'मिल बाचें मध्यप्रदेश' तो कहीं दिखाई ही नहीं दिया। दिग्गजों ने ही मोर का मुरब्बा बना डाला। मैं नहीं कहता कि सवाल नहीं करना चाहिए, टेस्ट नहीं लेना चाहिए, जांच नहीं करना चाहिए, मक्कार और बेकार टीचर्स पर कार्रवाई नहीं करना चाहिए लेकिन यह कार्यक्रम इसके लिए नहीं था। कोई 'कॉमेडी नाइट विथ कपिल' का आयोजन करे तो फिर बेवफाई के गीत सुनाने लग जाए तो आपको कैसा लगेगा। यह बिल्कुल वैसा ही था। हां, वो हजारों लोग जो अखबारों में नहीं छपे, स्कूलों में जरूर कुछ सिखाकर लौटे हैं। अपने राम तो बस यही कहना है कि भाई किसी की श्रृद्धांजलि सभा में जाओ तो चुटकुले मत सुनाओ। हर सरकारी मंच पर नेतागिरी झाड़ना जरूरी नहीं। बाकी भगवान भली करे। 

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