लखनऊ। यहां हाईकोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान कहा कि पुलिस को लवमैरिज मामलों में कार्रवाई का तरीका ठीक रखना चाहिए। प्रस्तुत मामले के संदर्भ में कोर्ट ने व्यवस्था दी कि पुलिस निष्पक्ष कार्रवाई करने मेंं बिफल रही है अत: वो प्रेमी युगल से दूर ही रहे। याचिका लवमैरिज करने वाली लड़की और उसके प्रेमी पति की ओर से लगाई गई है।
परिवार के खिलाफ अपनी मर्जी के लड़के से शादी करने वाली एक बालिग लड़की को माल पुलिस ने नौ दिन तक अस्पताल में बंदी बनाए रखा। उसके बयान कराने के बजाय कागज पर दस्तखत कराकर माता-पिता को सौंप दिया, जबकि वह पति के घर जाना चाहती थी। कुछ दिन बाद लड़की माता-पिता के घर से भाग कर अपने पति के घर पहुंच गई और याचिका दायर कर हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए कहा कि पुलिस का रवैया अत्याचारपूर्ण है। अदालत ने कहा कि पुलिस शादी करने वाले जोड़े से दूर ही रहे। युवती के बयान सीजेएम के समक्ष करवाए जाएंगे।
याचिका शादी करने वाले जोड़े ने मिलकर दायर की थी। याचिका में कहा गया कि युवक के खिलाफ लखनऊ के माल थाने में लड़की के अपहरण, जबरन शादी करने और जानलेवा हमला करने जैसे आरोपों के साथ एफआईआर दर्ज करवाई गई है। याचिका में गुजारिश की गई कि उसे खारिज किया जाए। याचिका में लड़की ने बताया कि वह जांच में सहयोग दे रही थी, लेकिन उसे पुलिस ने नौ दिन तक बंदी बनाए रखा। इस पूरे समय उसे अस्पताल में रखा गया। मजिस्ट्रेट के समक्ष उसके बयान नहीं करवाए गए। बल्कि उसके दस्तखत ले लिए गए।
उसके वकील ने उसका आधार कार्ड हाईकोर्ट में पेश किया, जिसके मुताबिक उसका जन्म जनवरी 1997 में हुआ था। अत: वो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुकी है। हाईकोर्ट में लड़की ने बताया कि उसकी शादी हो चुकी है और वह अपने पति के घर जाना चाहती थी, पर उसे उसके अभिभावकों को सौंप दिया गया। ऐसे में वह वहां से 10 दिन बाद भाग निकली और वापस अपने पति के घर पहुंच गई। फिलहाल वह अपने पति के साथ ही रह रही है।
युवती को दबाव और प्रभाव से रखें मुक्त
जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस डॉ. विजय लक्ष्मी ने कहा कि यह मामला विशिष्ट किस्म है, और इसमें अदालत को ही हस्तक्षेप करना होगा। जांच कर रही पुलिस का रवैया अत्याचारपूर्ण रहा है और उसने निष्पक्ष जांच नहीं की। हाईकोर्ट ने निर्देश दिए कि लड़की को 18 फरवरी को लखनऊ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाए। इस दौरान मलिहाबाद के एसएचओ उसके साथ रहेंगे।
सीजेएम को निर्देश दिए गए हैं कि वे लड़की का बयान दर्ज करें और यह सुनिश्चित करें कि उस पर कोई दबाव न डाले। इस बयान की कॉपी हाईकोर्ट को भी भेजी जाए। हाईकोर्ट ने लड़की की उम्र तय करने के लिए बलरामपुर अस्पताल में ऑसिफिकेशन टेस्ट कराने के निर्देश दिए हैं। पुलिस से कहा गया है कि वह लड़की और लड़के दोनों से मिलने की कोशिश भी नहीं करेगी।
वहीं लड़की के अभिभावकों और रिश्तेदारों से भी कहा गया है कि वे इन दोनों से न मिलें। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा होने पर ही लड़की किसी प्रभाव और दबाव से मुक्त होकर अपना बयान दे सकेगी। मामले की अगली सुनवाई दो मार्च को रखी गई है।