पंडित चंद्रशेखर। भगवान शिव और जल का बड़ा गहरा सम्बन्ध है। उनके सिर से गँगा निकली है। पवित्र नर्मदा उनके पसीने से उत्पन्न हुई है। जल अभिषेक शिव कॊ परम प्रिय है। इसका तात्पर्य क्या है। जब हम मल या गंदी चीज़ साफ करते है तो साफ पानी से उसे धोना पड़ता है। पवित्र जल उस मल कॊ साफ करने मॆ खुद गंदा हो जाता है लेकिन मल साफ हो जाता है। भगवान शिव कल्याण कारी वह तत्व है जिनका मन से स्मरण करने से मन की कालिमा गंदे विचार नष्ट हो जाते है। इस तथ्य कॊ दो कहानी से हम समझ सकते है।
समुद्र मंथन कथा
शास्त्रों मॆ समुद्र मंथन की कथा का वर्णन है जो बासुकी सर्प कॊ मथनी बनाकर मंद्राचल पर्वत द्वारा किया गया। इसे देव और दानव द्वारा किया गया। यहाँ समुद्र हमारा मन है अच्छे विचार देव तथा बुरे विचार दैत्य या राक्षस है। सबसे पहले कालकूट विष निकला। ध्यान रहे विष या मैल भारी होने से पानी की निचली सतह मॆ रहता है। जब हम पानी कॊ हिलाते है तो सबसे पहले बिष या गंदी चीज़ ही ऊपर आती है। समुद्र मंथन से निकले विष कॊ पीने की सामर्थ्य केवल भगवान शिव मॆ है क्योंकि वे परम कल्याणकारी तथा स्वयं काल स्वरूप है। वे संहार कर सकते है इसीलिये संहारक विष कॊ सम्भाल भी सकते है। यह विष उन्होने अपने कंठ मॆ धारण कर लिया जो भगवान नाम के उच्चारण से पवित्र गँगा मॆ पवित्र हो उनके सिर से निकला। गले मॆ विष व सर्प तथा मस्तक मॆ गंगा और चंद्र ये शिव के कल्याण रूपी शक्ति का स्वरूप है।
दक्ष प्रजापति द्वारा चंद्र कॊ श्राप
दक्ष की सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रदेव से हुआ था लेकिन चंद्र केवल रोहिणी मॆ आसक्त रहते थे। फलस्वरूप दक्ष ने चंद्र कॊ क्षय होने का श्राप दिया। हमारा मन भी जब लगातार एक वस्तु का भोग करता है तब उसे बीमारी का सामना करना पड़ता है। दक्ष श्राप के उन्मूलन हेतु नारद ऋषि की सलाह से उन्होने प्रभाष क्षेत्र मॆ भगवान शिव कॊ तपस्या की। शिव ने उन्हे आशीर्वाद दिया कॊ दक्ष के श्राप से तुम 15 दिन क्षय कॊ ओर मेरे आशीर्वाद से 15 दिन वृद्धि कॊ प्राप्त होगे। जहा चंद्र ने तपस्या की वहा भगवान शिव सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मॆ रूप मॆ स्थापित हो गये।
दोनो कथा का अर्थ
मन रूपी समुद्र मॆ अच्छॆ और बुरे दोनो तरह के विचारो का मंथन चलता है परंतु भगवान शिव कृपा से विष कटुता और अहंकार का नाश होता है। दूसरा मन भोगवादी है हमेशा एक तरह के भोग विलास मॆ लगा रहता है जैसे कोई सेक्स कोई नशे मॆ लिप्त रहता है। फलस्वरूप उसे बीमारी घेर लेती है यह शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की होती है और वह क्षय या पतन की ओर जाता है। तब भगवान शिव का स्मरण उसे फ़िर से वृद्धि की ओर ले जाता है। यदि आप हृदय में शिव को स्थापित नहीं करेंगे तो कभी भी किसी बुरी लत से छुटकारा नहीं प्राप्त कर सकेंगे।
शिवकृपा से दोषों का शमन
जन्मकुंडली मॆ राहु महाराज कॊ जीवन के विष की संज्ञा दी गई है। पत्रिका मॆ पितृदोष, कालसर्प योग हमारे बुरे कर्मों का फल है। यह विष बार हमारे जीवन मॆ दुर्योग द्वारा रुकावट या पतन का कारण बनता है जब शिव कृपा करते है तो विष समाप्त होता है। राहु के प्रकोप से मुक्ति मिलती है।
मानसिक शांति
शिव कृपा के द्वारा ही मन की शांति प्राप्त होती है। सभी प्राणियों का जीवन मन के अधीन होता है इसीलिये जब तक प्राणी शिव शरण नही जाता कर्म रूपी विष उसको हलाक़ान करते रहते है। इसीलिये भगवान शिव का पूजन अपनी सामर्थ्य के अनुसार करना चहिये। ध्यान रहे ढोंग करने की अपेक्षा सच्चे मन से की गई मानसिक पूजा ज्यादा अच्छा फल देती है।
आप क्या करें
आपकी बुरी आदतों से मुक्ति, मन में मौजूद विष तत्व और मानसिक उथल पुथल, एकाग्रचित्तता का अभाव ही आपकी सभी समस्याओं की जड़ है। इन समस्याओं के निदान के लिए कई विशेषज्ञ आपको कई तरह के उपाय और टोटके बताएंगे लेकिन यदि आप भगवान शिव का नियमित पूजन करते हैं। नजदीक के मंदिर में जाकर प्रतिदिन शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। बेपरवाह होकर शिव का ध्यान लगाते हैं। तो सारी समस्याओं का एक साथ निदान हो जाता है। यदि आप जीवन में सफल होना चाहते हैं तो अनिवार्य है कि आप हृदय में शिव को धारण करें। ताकि वो आपके सभी प्रकार के विष को समाप्त कर आपको गंगा की तरह निर्मल और विकास के लिए उपयोगी तत्व बना दें।
पंडित चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"
9893280184