900 साल पुरानी परंपरा बचाने शवों को घर में ही दफनाते हैं, सरकार ने जमीन नहीं दी

बड़ौदा/श्योपुर। मध्य प्रदेश में एक ऐसा भी गांव और कस्बा है, जहां परिवार के सदस्यों की मौत होने के बाद शवों को घरों में दफनाकर समाधियां बनाई जा रही हैं। घरों में बनी समाधियों के बीच परिवार के लोग साथ रह रहे हैं। कुछ घरों में तो दो-तीन लोगों की समाधियां बनी हैं। यहां शवों को कमरों, आंगन, बरामदा, चौबारा, घर के अगल-बगल और पिछवाड़े दफनाया गया है। इसके बाद समाधियां बनाई गई हैं। 

बड़ौदा और इंद्रपुरा में नाथ संप्रदाय के लोगों के अंतिम संस्कार के लिए कोई जगह नहीं है। इस वजह से ये अपनी 900 साल पुरानी परंपरा को बनाए रखने के लिए घरों में ही शवों को दफना रहे हैं। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के बड़ौदा कस्बे और 2 किमी दूर स्थित गांव इंद्रपुरा के कई घरों में परिवार के मृत सदस्यों की समाधियां मौजूद हैं।

बड़ौदा में नाथ योगी समाज के लोगों की आबादी लगभग 400 है। इस समाज के लगभग 25 से अधिक परिवारों के किसी न किसी सदस्य की मौत के बाद उसके शव को घर में ही दफनाया गया है। खास बात यह है कि कुछ परिवार इन समाधियों की पूजा कर रहे हैं तो कुछ ऐसे हैं, जो जमीन के अंदर शवों को दफना तो दिया, लेकिन वहां पूजा करने की बजाए उस जमीन को दूसरे उपयोग में भी ला रहे हैं।

नाथ योगी संप्रदाय में 900 साल पुरानी समाधि की परंपरा
नाथ योगी संप्रदाय के आराध्य देव भगवान शिव हैं। नाथ संप्रदाय के गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने पहली बार 11वीं सदी से शवों की समाधि की परंपरा की शुरुआत की थी। नाथ समाज में तभी से शव को दफनाने (समाधि) की परंपरा चली आ रही है। नाथ साधु-संत दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं।

परंपरा को निभाने घरों में दफनाने लगे शव
नाथ संप्रदाय के लोग के पास बड़ौदा कस्बे और इंद्रपुरा में शवों को दफनाने के लिए आज अलग से कोई जमीन नहीं है। अपनी 900 साल पुरानी परंपरा को बनाए रखने के लिए मजबूरी में इस समाज के लोग शवों को अपने घरों में ही दफनाने लगे हैं। यह समाज पिछले 20 साल से शवों के अंतिम संस्कार करने के लिए शासन और सरकार से मांग कर रहा है, लेकिन इस पर अभी तक कुछ भी नहीं हो सका।

25 लोगों की मौत के बाद शवों को घरों में दफनाया
नाथ योगी समाज के रामस्वरूप योगी बताते हैं कि 45 साल में अभी तक 25 लोगों की मौत के बाद घरों में ही शव दफनाना पड़ा है। आज भी यदि किसी की मौत हो जाए तो घर में शव दफनाने के अलावा कोई चारा नहीं है। रामस्वरूप के घर में ही दो मौतें हो चुकी हैं। पत्नी और बहू की मौत के बाद उन्हें घर में ही दफनाकर सास-बहू की समाधि बनाई गई है, जबकि घर में ऐसा करने की कोई परंपरा नहीं है। 

बड़ौदा में 700 साल पुरानी है पहली समाधि
तब जागीर थी, अब दफन होने के लिए जगह नहीं है। समाज के चेतन योगी का कहना है कि यहां नाथ समाज में पहली समाधि 700 साल पूर्व बड़ौदा कस्बे के वार्ड 4 में ली गई। अमृतनाथ महाराज, वक्तानाथ महाराज और संतोषनाथ महाराज की यह जागीर हुआ करती थी। यहां आश्रम भी था, लेकिन समय के साथ सब कुछ पीछे रहे गया और अब शव को दफनाने तक के लिए जमीन नहीं मिल पा रही है।

20 साल से मांग रहे हैं जमीन
बड़ौदा कस्बे के नाथ समाज के लोग जमीन उपलब्ध कराने के लिए कलेक्टर और एसडीएम को ज्ञापन सौंप चुके हैं। स्थानीय विधायक से भी समस्या के बारे में बताया है। इसके बाद भी समाधि के लिए जमीन नहीं दी जा रही है। पिछले 20 साल से जमीन की मांग उठा रहे हैं।'' 
रामप्रसाद योगी, अध्यक्ष, नाथ योगी समाज श्योपुर

जमीन उपलब्ध कराएंगे
नाथ योगी समाज की तरफ से मेरे पास जमीन के लिए कोई आवेदन नहीं आया है। समाधि की परंपरा है, तो उनके लिए अलग से जमीन उपलब्ध कराएंगे। बड़ौदा कस्बे में शासकीय भूमि विधिवत आवंटित की जाएगी।

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